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वृन्दावनविलास
मत्ता (म म स ग) जैनी जानै निजगुनसत्ता । सोई पावै शिवपुरपत्ता ।। जे एकांती कुमतिविरता। ते का जानें मदकरिमत्ता १८॥
सारवती ( म म म ग) जास अभ्यासत मोह घटै। अंतरका पट सो उघटै।। जो भवपार उतारवती। सोश्रुति सेइय सारवती १९ ॥
मुखमा ( त य म ग) चौमासुतसो यारी करिये। काहे मनमें शंका धरिये।। जाकी पदमा दासी कहिये। जो जो सुख मांगो सो लहिये२०१
मनोरमा (न र जग) ___ करम शत्रुपै कहा छमा । धर्मशस्त्र ले तिन्है गमा ॥ I अब न चूक मै कहों जमा।चिदविलासमें मनोरमा ॥२१॥
मोटन ( भ भ भ ग) . मातु पिता जिमि ढोटनको । पालत है वरु खोटनको।। . आप दया सम जोटनको । मेटि विथा मनमोटनको॥२२॥
१ इसे हालकी भी कहते हैं । २ इसे वामा भी कहते है। ३ श्रीपार्श्व* नाथसे । ४ दूसरे कवियोंने इसके पहले एक २ गुरुवर्ण रखकर ११ वणोंका।
मोटनक वृत्त माना है।