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वृन्दावनविलास* गुरुदेव नयंधरको आदि दे बड़े नामी । * निरग्रंथ जैनपंथके गुरुदेव जो खामी ।। जैवन्त ॥ ६ ॥ । भाखों कहां लो नाम बड़ी वार लगेगा। है परनाम करों जिस्से वेड़ा पार लगेगा । * जिसमें से कुछेक नाम सूत्रकारके कहों।
जिन नामके परमावसों परभावकों दहों । जैवंत ॥ ७ ॥ तत्त्वार्थसूत्र नामि उमास्वामि किया है।
गुरुदेवने संछेपसे क्या काम किया है । हैं जिसमें अपार अर्थने विश्राम किया है।
बुधवृद जिसे ओरसे परनाम किया है । जैवंत ॥८॥ वह सूत्र है इस कालमें जिनपंथकी पूंजी । । सम्यक्त्वज्ञानभाव है जिस सूत्रकी कुंजी ॥
लड़ते है उसी सूत्रसों परवादके मूंजी। * फिर हारके हट जाते है इकपक्षके लूंजी ॥ जैवन्त ॥९॥ खामी समन्तभद्र महामाप्य रचा है।
सर्वैग सात भंगका उमंग मचा है ॥ परवादियोंका सर्व गर्व जिस्से पचा है। * निर्वान सदनका सोई सोपान जचा है। जैवन्त ॥१०॥ अकलंकदेव राजवारतीक बनाया।
परमान नय निच्छेपसों सब वस्तु बताया ॥ इश्लोकवारतीक विद्यानंदजी मंडा।। * गुरुदेवने जड़मूलसों पाखंडको खंडा ॥ जयवंत ॥ ११