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वृन्दावनविलास
गण छन्द। (चार नगन) तरलनयन छन्द।
चतुर नगन मुनि दरशत।
भगत उमग उरसरसत। नुति थुति करि मन हरषत।
तरलनेयन जलवरषत ॥१॥
(चार भगन) मोदक छन्द। S।। || ॥ भौगन चार पदारथ पावत।
दर्शन ज्ञान बतौ तप भावत । सो निहचै विवहार विनोदक।
खर्गपवर्ग लहै फल मोदक ॥ २॥
(चार यगन ) भुजंगप्रयात छन्द । ISSISS IS SI ss समौनृत्यकी को कहै सर्वे वातौ ।
लखौ चारूँ येही अलौकीक जाती। १ चतुरनगनसे एक अभिप्राय तो यह है कि, बार "नगन" से यह छन्द बनता है । और दूसरा अर्थ "चतुर और ननमुनि" होता है ।२१ तरलनयन छन्दका नाम है, और मुनिके दर्शनसे तरलनेत्रोंसे मानन्दके ।
आंसू टपकने लगते है । यह भी अर्थ है । ३ "चारभगण" पक्षमें "भा-1 ग्यसे चारपदार्थ मिलते हैं। ४ "चार ये' अर्थात् चार यगण।
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