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नमी कहे तहन्ति स्वामी पर रहवो युक्त नथी, गुरु कहे रेदुष्ट ! रात्रिने विषे चलाये नही तिवारे शिष्य कहे माहरे स्कंधे वैसो गुरु स्कंध ऊपर वैसी रात्रें बिहार कीधी मार्ग चालतां पगऊंचानी चापले तिबारे गुरु शिष्यने मस्तके प्रहार करे तारे शिष्य प्रापणो दोष देखे हुं पापीयें गुरुने दुःखमां पान्या इममा करतां शुभचिंतवतां गुरु ऊपर धर्म मोह करतां केवल ज्ञान ऊपनो सुरू मार्ग देखवाथी गजगति चालवा लाग्यो तिवारे गुरु बोल्या सही मार सार केहबो सूधी गति चाले के शिष्य कहे हां जगवन् तुम्हारे प्रसाढ़े सर्व देखेंबुं त्रस सूक्ष्म नी खवर पडेबे तिवारे गुरू कहे ही शिष्य ! स्युं कोई ज्ञानातिशय ? हां स्वामी ज्ञान गुरु कहे प्रतिपातीकी प्रतिपाती शिष्य कहे अ प्रतिपाती एह सुणी गुरुयें चिंतव्यो एकेवली थयो हा ! मैर्भूको काम कीधा केवलीनी आशातना की धीतिबारे खंधा थी ऊतरी पगे लाग्या खमाव तां जली जावना जावतां गुरुने केबल ज्ञान ऊपनो एहत्रा शिष्य जोइये आपणो ने गुरुनो कार्य साधे ॥ इति चारुद्राचार्य कथा ॥ १ ॥
साधुये विषयादिक अनाचार मूंकी सुरू आ चार ग्रहण करबा, तेऊपर दृष्टांत त्रणभूतनी कथा कहीबे, वीतभय पाटणे अशिव मारी उपने हुते उदयनराजा कन्है त्रण मंत्रवादी याव्या, राजाये