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मय नगवान् चंपानगरीमे आए दमसारनी वहां आया, एकदिन पहिलेप्रहरमे स्वाध्यायकरके दूस रेप्रहरमे ध्यानकरते उसके मनमेआया कि आज हम नगवानकों पूबेंगे कि हम नव्यहै कि अभ व्यहैं चरमशरीरीहैं कि अचरम शरीरीहैं, हमको केवल ज्ञानहोगा कि नही, ऐसा विचारकरके नग वान्के पासजाय तीनप्रदक्षिणा करके वंदना कि याः तब नगवान् शपही बोले हेदमसार! तैने ध्यानकरते जो सोचा सो हम कहते हैं तू नव्यहै, और चरमशरीरी है। केवल ज्ञानतो प्रहर भरमे हो | ता परंतु कषायके उदयसे कुब विलंबहोगा दम सार बोला' हेनगवन् ! हम कषायोदयका परिहा रकरेंगे, पीजे तीसरेपहर पारणकी भिक्षाके लिये चंपानगरीको चले दरवाजेपर कोई मिथ्यादृष्टी मि ला वह किसीकामको जाताथा. उसने साधुकोदे खके अपशकुन हुशा ऐसाविचारा इतनेमे साधुने उस्को नगरीका निकटमार्ग पूछा उसने विचारा जो इसको दुःखमेमालूं तो अपशकुनका फलमिटे, ऐसा विचारके खोटामार्ग बताया कि जिसमे च लनसके, साधुको बडा दुःखभया' तब साधुक्रोधा धीन होय ऐसाविचारने लगाकि इसनगरके लो ग बडे दुष्टहैं, क्योंकि इसने ऐसा मार्ग बतायके दुःखमेंडाला, इसलिये इनको दंझदेना चहिये ऐ साविचार एकजगह बैठ क्रोधसे उत्थानश्रुतको गु