Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 226
________________ ( २२२ ) HD - दुःखित हो मरणासन्न होगया, तब पुत्रोने पूजा हेतात! शापको क्या दुखहै, शाज्ञाकीजिये सर्व घरबोला हेपुत्रों! तुम दोनोमेसे एक जैनधर्म चा रित्रपालके हमको अनृण करदेओ. धनपाल सुन के जीत होय नीचा मुखकर बैठा. शोभन बोला | हम दीदालेके आपको अनृणी करेंगे इतनासुन के पिता थानन्दित होय देवलोकमे मया, उसके मृत क्रियाके पीने शोननने वर्द्धमान सूरि शिष्य जिनेश्वर सूरीके पास दीवालिया, धनपाल कुछ होय उसदिन से जैन धर्मका द्वेषी जमा, उजाय नीमे साधुओंको आवनेनदे, तब बहांके श्रीसंघ ने यह उपद्रव जिनेश्वर सरिको लिखभेजा, सोसु नके चाचार्यने शोजनको वाचनाचार्य करके सा धुशेकी साथ देके शोभनाचार्यके उपद्रव शांति के लिये उजायनीमे भेजा. शोननाचार्य उजाय नीमे आये रात्रिके समय फाटक बंदथा बाहर टिकरहे, सवेरे प्रतिक्रमण करके नीतरजानेलगे तैसेही सामने धनपालमिला उसने शोजनाचार्य को देखके नचोन्हके द्वेषसे उपहासकर्कयोला “ग ईभदंतनदंतनमस्ते,, ऐसे गदहेके दांतके नदंत! तुमको नमस्कार, ऐसा वाक्य सुनके नाई जानके नी उसके वचनऐसा वचन यहभी बोले "कपि वृषणास्यवयस्यसुखंते,, बांदरकेवृषण समान मुख वाले नाई सुखहोय तुझको, फिर धनपाल बोला, CIDE - - -

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