Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 229
________________ ( २२५ ) धनुके पूजामे कहा' विष्णु अपने स्त्रीकों गोदोमेले के बैठेथे हमने विचारा यह अंतःपुरमे स्त्रीसेक्रीडा करते है पूजाका अवसर यह नहीं है, कपडा जो लगाया कि स्त्री के साथ विहार कोई देखनेन पावे झाड करदिया, बिना कहे ऋषनदेवकी पूजाकिया उस्मेकहा छापने देवताकी पूजा करने की आज्ञा दियाथा देवतातो ऋषभदेवही देखपढे, इस्से उन कीपूजा किया देवका स्वरूपतो यहहै, शांतरससे नरेऊए नेत्र और प्रसन्न मुख, देह स्त्रीसंग रहित हात शस्त्ररहित है इस्से वीतरागही देवहै, हेराज नू ! जो रागद्वेष युक्त है वह देव है उसमे देवत्व भी नही और संसार तारकताजी नही है, देवता संसार तारकही होता है, वैसेतो एकजिनेंद्र भगवान् हीहैं, इसलिये मुक्ति के अर्थ उन्हीकी सेवाकरना चाहिये, यह सुनके राजा प्रशंसा करनेलगे, एक समय ब्राह्मणोने राजासे यज्ञ करवाया, उसयज्ञमे arरेको वधकर्ते देखके राजाने कहा यह वकरा क्या बेंबें करता है, धनपाल बोला यह बकरा क हता है हम स्वर्ग फलके इच्छावान् नहीं हैं केवल तृण लक्षणसे संतुष्ट है तुमारे मारने से यदि हम लोग स्वर्ग जायंगे ऐसा है, तो अपने माता पिता को मारके क्योंनही यज्ञ करते वहभी स्वर्गगामी होंगे, राजा यहसुनके मनमे कुपितहो चुपहौरहे, एकदा राजाने एकतलाव बनवाया, जब वह जल

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