Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 228
________________ ( २२४ ) 9 देखके जगतमे धन्यहै जैनधर्म ऐसा कहता ऊया सम्यक्तपाय गुरुके पाससे द्वादश व्रतलेके पालन कर्ता हुआ उसो यतनाओंको कर्ताऊश विहार करनेलगा, एकदा किसी दुष्टने राजानोजसे कहा हेमहाराज! शापका पुरोहित धनपाल जिनके विना किसी देवताको नही मानताहै, तब राजाने परीहाके लिये पुष्पादि पूजा सामग्रीदेके कहाकि इहां देवताओंकी पूजा करशाओ, धनपाल राजा की आज्ञालेके पहिले नवानीके मंदिरमेगया वहां इधरउधर देखके बाहर निकल शिवमंदिरमे गया वहांसे वैसेही बाहर निकल विघ्नुके मंदिरमे जा य कपसे विस्तुको श्राफकरके बाहर निकल ऋ षनदेवके मंदिरमे आय प्रशांत चित्तसे पूजाकर के राजाके पास आया, राजाके चार पुरुषोंने इ सका वृत्तांत राजासे कहा , राजाने पूछा देवता ओंकी पूजाकिया? उसने कहा महाराज!शच्छी तरहसे किया, तब राजाने पूबा नवानीकी पूजा किये विन क्यों बाहर निकलआए, उसनेकहा ले ऊसे नरा खग हातमेलेके भुकटी चढायके नवानी महिषासुरका मर्दन करती हैं देखके फरसे बाहर आए और विचारा यह पूजा समय नहीहै युछ का समयहै, शिवके पूजामेकहा जिस्को कंठनहो उस्कों माला क्याचढावें नाकनही धपक्यादें, कान नही क्या स्तुतिकरें, पांवनही क्या प्रणामकरें, वि -

Loading...

Page Navigation
1 ... 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237