Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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( २२७ )
दोनो नेत्रहमारे ननिकालेजांय, यही वरमांगते हैं सुनके राजा शाश्चर्यहो बोला, तुमने हमारे मनका अन्निप्राय कैसा जाना? धनपालबोला जिनधर्मके सेवनसे. यहसुन राजाने प्रसन्न होय जिनधर्मकी प्रशंसा करते धनपालको धनमानसे पूजितकिया धनपालन्नी बोजयणाको वचावते जिनधर्म पालनकरने लगा ॥राजानियोग १ राजाका जकुम अर्थात् राजाके शाज्ञासे किसीकाममे लगनेसे ध र्मकार्य नहोना इससे धर्मकार्य नहोसकेतोभी पा पनही लगता क्योंकि राजाज्ञा जबरदस्तहै। जैसे कोशा पाटलिपुत्र नगरमे स्थूलभद्र मुनिके पास दीक्षापाय सम्यक्त मूलक द्वादशव्रत पालनेवाली कोशानाम वेश्याथी' उस्कों राजाने किसी धनुर्वि द्याजाननेवालेको देदिया' उस कोशाने इछानरहते भी अंगीकार किया परंतु उसरथीके शागे सर्वदा स्थूलनद्रमुनिकी स्तुति कियाकरे, वहरथी उस्को रिफावनेके लिये वगैचामे जाय बंगलेके खिडकी मे उस्के साथबैठके एकबाण आमके कुपकामे वे धा दूसरा उसबाणमे बेधा तीसराबाण उसबाण मे ऐसाबाणमे बाण बेधते खिडकीतक बाणको लडलगाय हातहीसे आम घींचके तोफके उसको देदिया,कोशानेभी कहाहमारीकलादेखो कहके एक थालीमे सरसोंकी ढेरीलगाय उस्केऊपर फूलोंसे ढकीजाई सूई खडीकरदिया, उसकेऊपर खूबतरह
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