Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 227
________________ ( २२३ ) "कुत्रनवेनवदीयनिवासः,, कहां तुमारा बासहोगा शोलनवोले “यत्रनवेनवदीयनिवासः,, जहांतुम्हा रा वासहोगा, इतना सुन भ्राताको चीन्हके धन पाल लजितहो चलागया,फिर शोनन नगरीमे पैठ चैत्यमे जिन वंदनकरके बाहर निकले इतनेमे सं पत्नी शायमिला. उनको धर्मदेशना सुनाय साथ मे लेके माताके इहां गए , भ्राताने विनयपूर्वक अपने चित्रशालामे टिकाया, मातास्त्री शादिकोंने प्राहारकी सामग्रीकिया सो शोननने निवारण कर दिया, कारण आधाकर्मिक आहार साधुओंकोमना कियाहै पीबेसे साधुलोग आहारलेआबनेकों प्रक्षा || लु श्रावकोंके घरगए धनपालभी उनके साथचला एक दरिद्र श्राविकाके घरमेगए तब उसने साधु के आगे दहीका वर्तन रखा, साधुने पूड़ा दही ठहै ? तव उसनेकहा, तीन दिनकाहै, तब वह दही साधुने नही लिया, धनपालने पूकायह दही लेने लायक क्यों नहीं ? साधु बोले अपने माता ही से पूछना, धनपाल दहीका भांडलेके शोननके पास आय पूबा इस दहीको बुराकहा तो इसमे कीडा हमको देखाय देखो तो हमभी जैनधर्मा हो जायगे, शोजनबोले हमकीडा देखावतेहैं,पर तुम शपने बचनपर रहो, तब शोजनने अलता दधि नांडमे लगायके घाममेरखदिया कणमात्रमे सपेद सपेद कीमा उसलत्ते में देखाई देनेलगे, धनपाल सम्मPENERam - -

Loading...

Page Navigation
1 ... 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237