Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 225
________________ ( २२१ ) - - चन सुनके विजयका मोह दूर होगया जिनमतका परमार्थ जानके सम्यक्तको पाय गया ॥ ॥ परमतीकीस्तुति १ उनकागुणकीर्तन, नमस्कार २ उनको वंदना, आलपन३ उनसे थोडा बोलना, सं लपन ४ वारवार बोलना, शशमादिदान५ उनको खानेपीनेकी चीजदेना, गंधपुष्पादिदान ६ परम तीके प्रतिमाकेलिये चंदन फूल इत्यादि देना, यह ब यतना अर्थात् यह नहीं करना चहिये, जैसे धनपाल, उडायनीके राजाका पुरोहित सर्वधरनाम ब्राह्मणथा, उसके धनपाल और शोनन नामकदो पुत्रथे, बडे विद्यावान और गुणीथे एकदा सिह सेनाचार्यके संतान सुस्थिताचार्य वहांआये सर्वध रसे याचार्य से स्नेह होगया, तब सर्वधरने कहास्वामिन् ! हमारे घरमे नमीमे गाडा कोटि धनहै वह कैसे मिलेगा? तब आचार्य बोले जो धन मिले तो? सर्वधरने कहा आधाधन देंगे, तब सूरी ने मंत्रबलसे धननिकालदिया. तब सर्वधरने धन की दोढेरीकिया तब आचार्यने कहा यहधन हमसे को क्या करनाहै, हमजो धनमांगे सो देशो, तब सर्वधरनेकहा कहिये, यह तुम्हारेपुत्र धनमेसे एक पुत्र हमको देओ• सर्वधर सुनके चुप होय नीची मंझीकर बैठरहा. फिर आचार्य वहांसे विहारकर गये अनंतर प्राचार्यका उपकार याद करता हुशा सर्वधर प्रत्युपकार करने नसके इस्से अतिशय - %3 -

Loading...

Page Navigation
1 ... 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237