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तो पिताके शरण जाताहै, दोनोसे संतापित हो ताहै तो महाजनोके शरण जाताहै, उनसेभी पी डित होयतो राजाके शरण जाताहै, इससमयतो मातापिताने धनलोनसे देदिया, महाजनोने धन देके लेलिया, राजानी उस्मे अनुमतहै तो किस्के श रणजाना? केवलपरमेश्वरसेवाय कोई रक्षा करसके गा नही यहसमऊके दुःखित नही होता, यहसुन राजा अनुकंपा रपवश होय महाजनोसे बोला हेम हाजनलोगो! तुमलोग क्या यह बालक वधका च्या पार करतेहौ? विचारकरो, नगर अर फाटक बहु तसे हो जायंगे परंतु यह बालक मरनेपर नहीं आयसकेगा, इतना कहतेही वह फाटक गिरावने वाली देवताने प्रसन्न होय राजा और बालकके ऊपर पुष्पवृष्टि किया, उसीसमय फाटक बनगया
प्रसन्न होय अपने अपने स्थान गये। आस्तिक्य५जिन वचन सत्यहै ऐसी प्रतीति, जैसे राजा पकाशशेखरने सभामे बैठके गुरूपदिष्ट जीवा जीवादितत्व सुनाय के गुरुके इन्द्रिय निग्रहादि गुण वर्णन किये तब एकसभासद विजयनामा यो ला महाराज! यह चंचल इंद्रिय सब, किसी प्र कारसे स्थिरनही होसकतेहैं, तो क्या गुरूजी स्थि र करसकेंगे, राजाने सुनके विचारा यह दुष्ट बुछि है औरोंकोनी विगाडेगा, ऐसाविचारके किसी बल से उसविजयके घरमे संदूकमे पाना रत्नानरण
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