Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 221
________________ । २१७ ) -- - गया तब पंद्रह दिममे उस्कापाष कोई याद नकरे ऐसा ऊआ, तब दूसरे रस्तेमे बैठा वहांनी ऐसा ही जाआ, एसे चौथे रस्तेमे निष्पाप और संवेग रसमे निमग्न होके छमहीनेमे केवलज्ञान पाय सिछिको पाय गया॥ अनुकंपा ४ दुखियोंका नि कारण दुख दूरकरनेकी इच्छा, वह दोप्रकारकी है द्रव्यसे और भावसे, दूसरेको दुखीदेखके सामर्थ्य रहते जो दुखदूरकरनेकी इच्छा होतीहै सोद्रव्या नुकंपा, हृदयके मृदतासे जो होतीहै वह नावान कंपा, जैसे सुधर्म राजाकों पंचालदेशके वरशक्ति नगरमे सुधर्मराजा राज्यकरताथा, उसका जयदेव मंत्रीथा, एकदिन किसी गांवसे इतने आयके कहा महाराज! महाबल नामा राजा गावोंका नाशा, डांका और लूट इत्यादि उपद्रवोंसे जनोको अति पीफा देताहै, आपही उसको दंड देसकतेहौ, रा जाने सुनके विचारा कि दृष्टोंका नाशकरना यही राजाका धर्महै इसलिये उस्को शासनदेना अवश्य है यह सोचके फौज तैयार करके उस्के ग्रामपर जाय युछकरके उस्को जीतके खुशीसे अपने नगर मे आवनेलगे तैसेही शहरका फाटक टूटा, राजा अपशकुनमान फिरके बाहर रहगये, दूसरे दिन फाटक तयार होनेपरं चले तब फिर फाटक टूटा ऐसा तीनवार टूटा, तब राजाने मंत्रीसे कहाकि किसी जोतिषीको पूछो यह क्यों बारबार फाटक

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