Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 220
________________ ( २१६ ) मुक्तिपदके देनेवाले हैं जैसे दृढप्रहारीको ऊए, मा कंदीनगरीमे सुभद्रश्रेष्ठी बसताथा, दत्तनामक एक पुत्र उस्कोथा वह लडकईमे लडकोंके साथ खेल नेमे लडकोंको दृढप्रहारसे मारे इसलिये उसका नाम लोगोंनें दृढप्रहारी रस्काथा, लोगोने उसे ब ऊत मनाकिया तोजी वहनमाने लडकों को मारा ही करे तब राजाके प्राज्ञासे पिताने उस्को नगर से निकाल दिया, उसके दुष्टता से कहीं रहने को जगह नमिलनेसे चोरोंमे जायरहा, चोरी करनेलगा एक दिन किसी ब्राह्मणके इहां चोरी करने गया वहाँ उस ब्राह्मणंकी गौ जीतर जानेनदे फूंकर्के मारने लगी, इसने उसकों खङ्गसे मारकाला तब ब्राह्मण लाठी लेखाया उस्कोभी मारनाला तब उस्की स्त्री गर्भवती आगेझाई उस्कोभी मारनाला, पीछे उ स्का गर्भ भूमिमे गिराया देखके अकस्मात् उस कौ वैराग्य उत्पन्न होगया, तब वहचोर निर्वेद युक्तहोके मनमे विचारनेलगा हा !!! मैंने यह क्या पापकिया, धिक्कार है हमको ऐसे घोरपापी हम है हमारी क्यागति होगी !! ऐसा विचारके पांच मूंठीलोच करके चारित्र ग्रहण किया, और जब तक हमारा पाप लोगोंके स्मरणमे रहेगा तबतक अन्नपान नलेंगे ऐसा शुभिग्रह करके उसनगरके पूर्वदिशा के रस्तेमे कायोत्सर्ग करके बैठा, लोगोने ढेला मुक्कियोसे बऊतमारा तोजी कुमाही करता

Loading...

Page Navigation
1 ... 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237