________________
( १९१ ).
हा अर्थात् मिथ्यात्व और मिश्रपुंजको आश्रयण करके उदयरोका पुंजका आश्रयण करके मि थ्यास्वन्नावको दूर किया इसप्रकार उदीर्णमिथ्यात्व के दायकरनेसे और अनुदीर्णके उपशमकरने से जोगुण उत्पन्न हुशा सो दायोपसमिक सम्यक्तहै, औपशमिक दायिक २ क्षायोपशमिक यहतीन और चौथा सास्वादन ऐसेचतुर्विध, पूर्वोक्त उप शम सम्यक्तके त्यागकेसमय उसकेअंशका जो शनु नव होताहै वह सास्वादन सम्यक्तहै, इनचारोम एक वेदकसम्यक्त मिलावनेसे पंचविध होताहै, दप श्रेणीको प्राप्तनये जीवके शनतानुबंधि क्रोधमान मायालोन और मिथ्यात्व और मित्र इनदोनों पुंजोके क्षयकरनेपर दायोपशमिक रूप तुझपुंज क्षीणहोते रहते उसके अंतिमपुजलका क्षबकरनेमे उद्यतके अंतिमपुजलका जानना वेदकसम्यक्त कहा वताहै, यही पंचविध सम्यक्त निसर्गसे भर अधि गमसे होतेहैं इससे दशाविधनए, अथवा पन्लव णासूत्रमे लिखेहुए दशविध, सोऐसे, स्वनावहीसै जिनोक्तवचनमे रुचिहोना सो निसर्गरुचि १ गुरु केउपदेशसे जिनोक्तवचनमे रुचिहोना उपदेशरुचि २ सर्वज्ञवचनरूप शज्ञामे रुचिहोना आज्ञारुचि३ सूत्रोंकरके रुचिहोना सूत्ररुचि ४ जिनोक्त एकवस्तु जाननेसे अनेकवस्तुओंमे रुचिहोना वीजरुचि ५ विशेषजाननेसे रुचिहोना अभिगमरुचि ६ सकल
-