Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 205
________________ ( २०१ ) पडते हैं, इसमेसंयोजना कारणहै, पहिले आर्यर तिने सिद्धांतका जुदा अनुयोग किया, दोयम् स्कंदिलाचार्यने वाचनाकिया, तीसरे देवर्द्धिगणीने पुस्तकारूढकिया, इससे सुधर्मास्वामीकी वाचना विशृंखल होगई कालका स्वभाव प्रतिकठिन है, इस प्रकार सिद्धांतके उद्धारादिकरने से देवर्द्धिगणिमा श्रमण जिनशासन के प्रजावकभए ॥ धर्मकथी धर्म की कथा कहनेवाला सोकथा चारप्रकारकी आ पणी, विक्षेपणी, संवेदनी औरनिर्वेदनी, जिसमे हेतु और दृष्टांत से स्वमतस्थापन कियाजाताहै वह आक्षेपणी १ जिसमे मिथ्यादृष्टियों कामत पूर्वापर विरोधदेखायके खंजन किया जाता है वह विपणी २ जिससे मोका अभिलाष उत्पन्नहोय बह सं वेदनी ३ जिससे वैराग्य उत्पन्न होता है वह नि वैदनी ४ जैसे नंदिषेण, एकदा श्रीमहावीरस्वामी राजगृहयाए तब श्रेणिकराजाके पुत्रनंदिषेण भग वानके वंदनाके लिये आयके भगवानकी देशना सुनके प्रतिबुद्ध होय प्रव्रज्याकी श्राज्ञा भगवानसे मांगा, भगवानने जैसी तेरीइच्छा इतनाही कहा प्रतिबंध मतकरो यह नहीकहा, अनंतर मातापि ताके आज्ञासे दीक्षामहोत्सव होनेलगा तब शास नदेवीने आकाशमेसे कहाकी अनीतेरा भोगकर्म है तथापि भगवान से दीक्षालिया, दशपूर्व तक प ढा, भोगकर्मके उदयसे पहिला कियाहुआ जोग

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