Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 215
________________ - कमल वहां आयके नीचा मुंहकरके वैठा, साधुने प्रतिवोधदिया और पीसे पूबाकि तैने कुछ जा ना? वहबोला मैंने इसपेडके नीचेसे एकसेशठ मकोळे निकलके बिलमे घुसगये यह जाना, तब साधुने पूछा हमने कहासो कुछजाना, उसनेकहा, कुछनही , तब वह साधु उसको अयोग्य जान वहांसे चलदिया, फिर दूसरे साधुशाए, उनकोनी धनश्रेष्टीने कहा, उन्होंनेन्नी उस्कों प्रतिबोधदेके पूबा कि तुमने कुबजाना? तब उसने कहा कि आपके बोलनेमे एकसे आठवार घांटीऊपर नीचे होने लगी सोजाना और कुबनही जाना वहनी खिन्न हो चलेगए, पीले तीसरे साधु आए, उनको उनदोनो साधुओंका हाल कहा, साधुने कहा अच्छा हमारेपास भेजो, जब वह कमलाया तब साधुनेकहा हेकमल ! तेरेहातमे मबलीके ऐसीरेखा है इससे तुझको धनबजत मिलेगा, इत्यादि ऐसी ऐसी बहुतसी बाते कहते२ बीचबीचमे धर्मकीबातें सुनायसुनाय कुछदिनमे सम्यक्तमे दृढ करदिया। प्रत्नावना २ जिनमतको प्रकाश करनेवाली, सो शाठप्रकारके प्रनावक कहनेसे गतार्थ होगई तथा पि जिनमतके मुख्यतत्व प्रकाश करनेसे और ती थंकर नामकर्म उपार्जन करावनेसे सम्यक्तीकोनी विशिष्ट ज्ञानप्रकाशताकी करनेवालीहै इस्से जुदी गिनीगई। तीर्थसेवा ३ तीर्थ दोप्रकारकाहै, द्रव्य -

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