Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 214
________________ ( २१० ) पिता नलिनीगुल्म विमानकों गयाथा वहां मंदि र बनायके विराजमानकीथी, पीछे अन्यमती लो गोने उसको छिपाय उसकेऊपर महादेवका लिंग स्थापन किया, अबमेरी स्तुतिसे प्रकट हुवा, यह सुन विक्रमको बडा चमत्कार ऊवा, और आनंद ऊवा, उसी समय जिनोक्त तत्वरुचिरूप सम्यक्त की प्राप्ति ऊई, राजाने मंदिरकी पूजादिके लिये १०० ग्राम अर्पण किये, और सिद्धसेनसे सम्यक्त ले जैन श्रावक होगया, पीछे सूरीने छौरनी १७ राजाओंको प्रतिबोध जैनी किया और १८ की प्रतिज्ञा पूरीकिई, पीछे वृद्धवादी गुरूनें उस सिद्ध सेनाचार्यको आलोचनादि देके गच्छमे ले लिया, यह आठ सम्यक्तको प्रकाशित करते हैं, इससे प्र भावक कहावतेहैं ॥ द्रव्य क्षेत्र काल भावादिके अ नुसार नानाप्रकारसे मूर्खको भी प्रतिबोधदेना यह जिनशासन कुशलता १ जैसे गुणाकर सूरीने कम लको प्रतिबोधदिया, किसी नगरमे परमश्रावक धननामा रहताथा: उसका बेटा कमलनाम व्यव हारमे कुशलथा परंतु धर्ममेकुबजी नही समऊताथा पिताने उसको बहुत धर्ममार्ग समकाया परंतु कृत कार्य नहुवा, तब एक प्राचार्य गांव के बाहर आए, उनके वंदनार्थ सब लोगगए धनश्रेष्ठोजी गया पनेपुत्रको प्रतिबोध देनेकेलिये प्रार्थनाकिया, तब साधुनेकदा उस्को हमारेपास भेजदेखो, दूसरे दिन

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