Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 207
________________ ( २०३ ) फसेहो सोनही देखते दूसरेको प्रतिबोध देते हौ ? इतनेमे उसवेश्याने भोजनके वास्ते पुकारा मुनि दसकी प्रतिज्ञापूरी नहुई इस्से नउठे तब वेश्याने कहा दसवें तुम्हीहोके जोजनकरो, इतना सुनते ही मुनि जोगकर्मदयसे तथास्तु कहके फिर मुनिका ब्रेषलेके जगबानू के पास आायके महाव्रत लिया, निर्मल चारित्रपालन करके अंतमे समाधी से मरके स्वर्गमेगया, वहांसे च्युतहोके महाविदेह से सिद्ध होगा ऐसा वीरचरित्रमे लिखा है, महानिशीथमेतो केवल ज्ञान हुछ ऐसा कहा है, यह विसंवाद है, इसनंदिषेणने धर्मकथी होके बारह वर्षतक वेष बोड वेश्या के घरमेरहके जी प्रतिदिन दसकामी पुरुषोंको प्रतिबोधदिया उन्होने प्रतिबोध पाया तो आधुनिक धर्मोपदेष्टा वेषधारी साधुओंके उ पदेशसे सम्यक्त नहीहोगा पापहोगा दुधाणहुवो इयाणं यह भावविजयका कहना संसारको बढा वने वाला है ॥ ከ वादी ३ वादि, प्रतिवादि, सभ्य अर सभापति इसचतुरंग सनामे प्रतिवादीका पक्ष खंडन और अपना पक्ष स्थापनकेलिये अवश्य बोलनेवाला, जैसे मल्लवादीने प्रत्यक्षादि प्रमाणकुशल प्रतिबा दीके जयसे राजाके इहांसे बडी प्रतिष्ठा पाईथी ॥ नैमित्तिक ४ निमित्त अर्थात् तीनो कालमेका ला भालानादि कहनेवाले शास्त्रका जाननेवाला जैसे

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