Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 199
________________ है, ऐसे विचारसे सम्यक्तशोधित होताहै इसलिये ठछि कहावतेहैं ॥ ॥ रागद्वेषरहित यथार्थ उपदेश करनेवाले सर्वज्ञके वचनोमे संदेह १ अन्यअन्यमतके देखनेका शनि लाष २ जिनाज्ञानुसारी चारित्रके धारणकरनेवाले साधुओंकी निंदा ३ कुतीर्थियोंकी स्तुति ४ कुती र्थियोंसे आलापादि संबंध ५ यह पांचसम्यक्तको दूषितकरतेहैं इससे दूषणकहावतेहैं। जैसा किसी एकनगरीमे दोबनियेथे वह दोनों प्राक्तन कर्मसे दरिद्रीथे एकसमय वहदोनो किसी एकसिहपुरुषको देखके अपनी दरिद्रता दूरकरने केलिये सेवाकरनेलगे, उससिझने सेवासे प्रसन्न होके दोनोंको दो कंथादी और कहाकि तुमदोनो यह कंथा छमहीनेगलेमे बांधेरहो रोजपांचसे असफी यहदेगी, तबवहदोनो कंथालेकर घरआए, उनमे से एकने यहविचारा कि यहकथा क्याजाने असफी देगीयानही ऐसीमनमे शंकाकरके औरजनके लजा से वहकंथा फेंकदिया, दूसरेने निशंक और लजा छोफके छमहीने गलेमेबांधररका उससे वह वडा धनी होगया, तब वहकंथा फेंकनेवाला उसकीधन समृद्धीदेखजन्मन्नर सोचकरनेलगा और दूसरा सु खभोगकरनेलगा, इसलिये नव्यजीवको अच्छेवस्तु मे थोडीभी शंकानही करना ॥ १ ॥ ॥ जैसा किसी एकनगरमे ब्राह्मणथा, वह रोज धारा

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