Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 198
________________ ( १९४ ) प्यासाब्राह्मण गुलगुलाखाने की इच्छा करता हैं, वैसे ही सम्यक्ती जीव कर्मके दोष से अच्छे अनुष्ठानादिधर्म करनेमे असमर्थ होकेनी अच्छे कर्ममे इच्छा होती है । अर्हत और धर्मोपदेशकगुरु इनकी पूजा वि श्रामणादिकरनेका नियम ३ जैसा श्रेणिकराजाने अविरती होकेनी प्रतिदिन सोनेके एकसोयाठ जवोंसे भगवानके आगे साथियाकरनेका नियम कियाथा, उसपुण्य से तीर्थंकरगोत्र उपार्जन किया, इनतीनोंसे सम्यक्तका निश्चय होता है इसलियेलिंग कहावतें हैं ॥ अर्हत, तीर्थंकर १ सिद्ध, क्षीणाष्टक र्म २ चैत्य, जिनेंद्र प्रतिमा ३ श्रुत, आचारादिया गम ४ धर्म, कांत्यादिरूप ५ साधुवर्ग, श्रमणस मुदाय ६ च्छाचार्य, छत्तीसगुणके धारणकरनेवाले गणस्वामी ७ उपाध्याय, सूत्रपाठक८ प्रवचन, जी बाजीवादितत्वकथन ९ दर्शननक्ति, सम्यक्तवान् मेनक्ति १० इनदसोंमे विनय अर्थात् पूजा छागे यावते देखके उठके सामने जाना, शासनादिदेना, इत्यादि बाह्यविनय, और इनमेप्रीति, इनकागुण कीर्तन, निंदात्याग और आज्ञातनापरिहार इत्या दि. आभ्यंतरविनय ॥ 11 #1 जिन, वीतराग १ जिनमत, तीर्थंकरप्रणीतस्या द्वादरूप जीवाजीवादितत्व २ जिनमतस्थित, जि नेंद्रकेवचनोंका अंगीकार करनेवाले साधुआदि ३ यही तीनसार है इनसे जिन्नसंसार मे सबनिस्सार

Loading...

Page Navigation
1 ... 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237