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प्यासाब्राह्मण गुलगुलाखाने की इच्छा करता हैं, वैसे ही सम्यक्ती जीव कर्मके दोष से अच्छे अनुष्ठानादिधर्म करनेमे असमर्थ होकेनी अच्छे कर्ममे इच्छा होती है । अर्हत और धर्मोपदेशकगुरु इनकी पूजा वि श्रामणादिकरनेका नियम ३ जैसा श्रेणिकराजाने अविरती होकेनी प्रतिदिन सोनेके एकसोयाठ जवोंसे भगवानके आगे साथियाकरनेका नियम कियाथा, उसपुण्य से तीर्थंकरगोत्र उपार्जन किया, इनतीनोंसे सम्यक्तका निश्चय होता है इसलियेलिंग कहावतें हैं ॥ अर्हत, तीर्थंकर १ सिद्ध, क्षीणाष्टक र्म २ चैत्य, जिनेंद्र प्रतिमा ३ श्रुत, आचारादिया गम ४ धर्म, कांत्यादिरूप ५ साधुवर्ग, श्रमणस मुदाय ६ च्छाचार्य, छत्तीसगुणके धारणकरनेवाले गणस्वामी ७ उपाध्याय, सूत्रपाठक८ प्रवचन, जी बाजीवादितत्वकथन ९ दर्शननक्ति, सम्यक्तवान् मेनक्ति १० इनदसोंमे विनय अर्थात् पूजा छागे यावते देखके उठके सामने जाना, शासनादिदेना, इत्यादि बाह्यविनय, और इनमेप्रीति, इनकागुण कीर्तन, निंदात्याग और आज्ञातनापरिहार इत्या दि. आभ्यंतरविनय ॥
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जिन, वीतराग १ जिनमत, तीर्थंकरप्रणीतस्या द्वादरूप जीवाजीवादितत्व २ जिनमतस्थित, जि नेंद्रकेवचनोंका अंगीकार करनेवाले साधुआदि ३ यही तीनसार है इनसे जिन्नसंसार मे सबनिस्सार