Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
( १९८ )
-
-
उससमय उसीवापीमे स्नान वास्ते आए लोगोंके मुखसे मेराआवना सुना मुझको पूर्वभवके धर्माचा र्य जान वंदनाकेलिये शावनेलगा मार्गमे श्रेणिक के घोडके टापसे मरके छनध्यानके योगसे दर्दरां कनामा महर्द्धिकदेवता हुशा अवधिज्ञानसे मुक को इहां शयाजान आयके वंदनापूर्वक रिद्विदे खायके गया ऐसा कुतीर्थिपरिचयकाफल सुनके सम्यक्तियोंको सर्वथा उनका परिचयनही करना ॥ - प्रवचन द्वादशांगी रूप उसका कालोचित सूत्रा र्थधारण करनेवाला आचार्य, जैसे देवर्द्धिगणिद मात्रमण, किसीसमय भगवान् महावीरस्वामीका राजगृहमे समवसरणहुशा, तब नगवान् के धर्म देशनाके अनंतर इंद्रनेपूछाकि इसअवसर्पिणीमे आपकातीर्थ कबतक प्रवृत्तरहेगा? भगवानबोले एकीसहजार वर्षके दुखमा आरेतक, इसआरेके अंतमे पूर्वाह्नमे श्रुत, सरि, धर्म और संघका, म ध्यान्हमे विमलवाहननप सुधर्ममंत्रि और उनके धर्मका, सायान्हमे बादरअग्निका विच्छेदहोगा, ऐसातीर्थ बिच्छेदहोगा, पुनः इन्द्रनेपूबाकि शाप का पूर्वगतश्रुत कितनेकाल रहेगा? नगवान्बो ले, एकहजार वर्षतक् शनंतर विच्छेद होजायगा, इंद्रनेफिरपूडा किसआचार्यसे फिरसबपूर्वगत श्रुत
शवेगा? नगवान्बोले,देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमणसे, फिरइंद्रने पूछा, आजकाल उस्काजीव कहांहै ? न
-

Page Navigation
1 ... 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237