Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 194
________________ ( १९० ) . . . . ... ... . . u ma inkinitin L दीपकसम्यक्त है ॥ जोशाप मिथ्यादृष्टीहै सोकैसे सम्यक्तीकहावेगा ? ऐसा संदेहनहीकरना, कारण उसमिथ्यादृष्टीके जो धर्माधर्म प्रकाशकरनेका परिणाम विशेषहै सोउस के उपदेश सुननेवालों के सम्यक्तका कारणहै इस हेतु कारणमे कार्यका उपचारकरके मिथ्यात्वी ध पिदेशकनी सम्यक्ती कहाजाताहै, जैसा आयुका कारणघृत आयुकहावताहै, यहसम्यक्त शाधुनिक धर्मोपदेशकोकों कैसानहोगा? होताहै तो "शप डब तेबीजाने किमतारसे,, यह नावविजयका लि खना उत्सूत्रहै, अथवा औपशमिक १ हायिक २ दायोपशमिक ३ यह त्रिविधहै, उदीर्णमिथ्यात्व को अनुलवकरके वीणकरनेसे और अनुदीर्णमिथ्या त्वको परिणामविशेषकी विशुद्धिकरके उपशमक रनेसे जोगुण उत्पन्न होताहै वह ौपशामिक स म्यक्तहै, यहसम्यक्त ग्रंथिन्नेदनकर्ता और उपशम श्रेणी करनेवालोंको होताहै, अनंतानुबंधी क्रोध मानमायालोनका क्षयके शनंतर मिथ्यात्व मित्र सम्यक्त पुंजरूप तीनप्रकारके दर्शनमोहनीय कर्म का सर्वथा दयहोजानेसे जो गुणपैदाहोताहै वह दायिकसम्यक्तहै, यह क्षपकश्रेणी करनेवाले जी वको होताहै, उदयआएहए मिथ्यात्वको मिथ्यात्व विपाकके उदयकरके नोगनेसे क्षीणहोनेपर और जो शेषसतामेहै उदयनही आया वह उपशांत -

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