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सिछ होगा ॥
॥ न चौथा पद, अंगठी आदि धारण करने ही से सब लोगोको प्रगट हो जाता है तो गुप्ततासे रखना सिछ नही होता है, जो गुप्ततासे द्रव्य र खते हैं वह परिग्रही होय, न पांचवां पद, गृह स्थसे कोई वस्तु किसी प्रयोजनके लिये साधु ले पाए फिर वह उसको देदेते हैं उस्से अदत्तादान बुछिनी दृष्ट नही होती , औरत्नी योगशास्त्र मे हेमचंद्रसूरिजी ने कहा है। सर्वानावेषु माया स्त्यागः स्यादपरिग्रहः। यदसत्स्वपिजायेत मछयाचितविप्लवः॥१॥ इसकाअर्थ, द्रव्य क्षेत्र काल भावोमे मूर्छा अर्थात् मोहका त्यागकरना यही परिग्रहत्यागहै, द्रध्यादि त्यागमात्रसे अपरिग्रहव्रत नही होताहै, क्योंकि द्रव्य क्षेत्र काल नाव नरहनेसेभी मूर्ध्वासे चिन्तवि प्लव होताहै, अर्थात् संतोषसुखका नाश होता है, धन नरहतेनी धनमे मावान् राजगृह नग रमे रहनेवाले रंकके ऐसा चित्रका लेश दुर्गति पाप कारक होताहै, द्रव्य क्षेत्र काल भाव रूप सामग्री बिशेष रहतेभी दृघ्नारहित निरुपद्रवचित्त साधु
ओकों संतोषसुखके लानसे चित्तविप्लव नही हो ताहै, इसलिये धर्मोपकरण रखनेवाले यतीलोगों का शरीरमे उपकरणमे ममत्व नहीहै इससे परि ग्रह नही होसकताहै इसमे आगमका प्रमाण वचन