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उसी योगशास्त्रमे लिखा है || यद्वत्तुरगःसत्स्व प्यानरणविभूषणेष्वनभिसक्तः तद्वदुपग्रहवानपि नसंगमुपयातिनिर्ग्रन्थः १ ॥ अर्थ, जैसा घोडा आभूषणोंसे लदा रहता है परं तु उसकी उननूषणोमे शासक्ति नही रहती क्यों कि वह कुछ उनका सुख जानतानही, वैसेही प रिग्रहकी वस्तु पासरहते भी निर्ग्रथ साधउनमे या सक्त नही होते हैं, उससे परिग्रही नही होते हैं ॥
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सम्यक्त निर्णयमे भावविजयने यद्यपि बहुतसा लिखा है परंतु निस्सार बाग्वादका करना हमको अनुचित है, इसलिये केवल मुख्यकोटी जो आधु निक धर्मोपदेशक गुरूलोगोकों मिथ्यादृष्टी 9 असं यती २ प्रविरती ३ पासत्या ४ पाखंडी ५ भवसाग रमे मुवानेवाले ६ बनायके आहार और वस्त्रादि देनेमे पापफल होता है अर देनेवालोंको मिथ्यादृष्टी लिखा सो यह लिखना उसका केवल द्वेषके आवे शसे असंगत है अर्थात् विश्वास कर्नेलायक नही है औरजो प्रमाण लिखेहैं वहभी स्याद्वादनययुक्त व चनोकरके भिन्नतात्पर्य भिन्नतात्पर्यमे लगायके भो लेलोगोंको ठगनेकेलिये लिखा है, यह यथार्थ जा ननेकेलिये और जिनलोगोंकी इस सम्यक्त निर्णय के देखनेसे स्थाभ्रष्ट हो गई है वह श्रद्धायुक्तहोय इस हेतु संक्षेपतया यह तत्वविवेक लिखा है अर उचित है जसविजयपंथियोंको कि इसकालके धर्मो