Book Title: Viveksar
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 180
________________ ( १७६ ) सेजी पहिले बंदना करना चाहिये सो दृष्टांत यह है ॥ ॥ ॥ "अत्रांतरे तत्र नंदीश्वरप्रासादेंतरिक्षादे कं विमान मवततार तन्मध्यादेको दिव्य भूषा धरः सुरोनिर्गत्य मदनरेखां प्रथमं त्रिःप्रदक्षि णीकृत्य प्रणनाम पश्चान्मुनिं प्रणम्य अग्रे नि विष्टः सुरो मणिरथविद्याधरेंद्रेण विनयविष यसकारणं पृष्टः ससुरः प्राह ग्रहंपूर्वभवे मणि रथनाम्ना बृहजात्रा निहतो ऽनयाराधना न शनादि कृत्यानि कारितानि तत्प्रजावा दह मीदृशो ब्रह्मदेवलोके देवो जात स्ततो धर्मा चार्यत्वा दह मिमां प्रथमं प्रणत इत्यादि ॥ इस्का अर्थ, इस अवसरमे वहां नंदीश्वर के मं दिरमे आकाशसे एक विमान उतरा, उस विमान से एक दिव्य उत्तम छाभूषणधारी देव उतर करके मदन रेखाको पहिले तीन प्रदक्षिणापूर्वक प्रणाम करके पीछे मुनिको प्रणामकर यागे बैठगया, तब मणिरथ विद्याधरेंद्रने विनयविपर्यास अर्थात् प हिले मुनिकों प्रणामकर्ना पीछे मदनरेखाकों सो न किया इसका कारण पूछा, तब वह देवबोला, हम पहिले भवमे मणिरथ नामक बडे भाई से मारेगए अर इस मदनरेखाने हम को प्राराधना अर अनशनादि कराया था उसके प्रभाव से हम ऐसे ब्रह्म देवलोकमे देव हुए, इससे यह हमारी

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