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और श्रीजिननगवान् को बंदन करनेवाला श्री जिननगवान्को मान्य हैं ऐसा हम मानते हैं अर्थात् हमको यह निश्चय है, कारणकी श्रीजिनभगवान के नक्तोंका तो वह स्वन्नाव हीसे अर्थात् गुणग्राही चिन्तयती से वह पुरुष मान्य है (१०) जैसा राजा का लेखवाह अर्थात् चिठी पहुंचानेवाला हलका रानी राजाके नक्त नियुक्तकोको अर्थात् राजात्रि तोको मान्य होता है, वैसाही जिनमत प्रियोंको निर्गुण नी लिंगी मान्य होता है, (११) जिस के हृदयमे सर्वज्ञ भगवान् दै और वचनमे सामा यिक है और हातमे धर्मध्वज अर्थात् रजीहरण है वह जगत् में ज्येष्ठ शर्थात् श्रेष्ठ भर गुणियोंमे अग्रगण्य है (१२) जिन देशों में धर्मके प्रकाशक साधु नही है उन देशों में धर्मका नाम भी नहीं जानाजाता है फिर क्रिया की तो क्या बार्ता क हना (१३) धर्मकों करते हैं धर्मकी रक्षा करते हैं धर्म को बढावते है इसलिये धर्मके व्यवस्थापक सुबछि साधु जगत् के क्यों नही बंदनीय होंगे? (१४) मन वचन और काया करके करने और करनेवालेकों सम्मति देने से तीन प्रकारका छन्न कर्म उपार्जन करनेवाले साधुजन धर्म बुहिवाले सजनो के पूजा योग्य अवश्य होगें (१५) चा रित्र से हीनन्नी मुनि दर्शन मे अत्यंत द्रढ होय तो अत्यंत पूजन लायक होता है क्योंकि बके
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