Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 143
________________ १५१ प्रतिष्ठा-विधान गाथा नं. ४२० मुखपटविधानादि बहुमूल्यं सितश्लचण प्रत्यग्रं सुदशान्वितम् । प्रनष्टावृत्तिदोषस्य मुखवस्त्रं ददाम्यहम् ॥१०७।। ॐ नमोऽहंते सर्वशरीरावस्थिताय समदनफलं सर्वधान्ययुतं मुखवस्त्रं ददामि स्वाहा।' मदनफलसहितमुखवस्त्रमंत्रः ॐ अट्ठविहकम्ममुक्को तिलोयपुज्जो य संथुश्रो भयवं । अमरणरणाहमहिनो अणाइणिहणो सि बंदसि ओ ॥ स्वाहा । कंकणबधनम् निरस्त्रमन्मथास्त्रस्य ध्यानशस्त्रास्तकर्मणः । विघ्नौघघ्नानि काण्डानि वस्त्रप्रान्तेषु विन्यसेत् । काण्डस्थापनम् गाथा नं. ४२१ यावारकस्थापनादि सर्वद्विदलसंभूतैर्बालांकुरविरूढकैः । पूजयामि जिनं छिन्नकर्मबीजांकुरोकरम् ॥११२॥ यवादिधान्यसंभूतैः प्रौढोल्लासिहरिप्रभैः। यावारकैर्जिनं भक्त्या पूजयामि शुभप्रदैः॥११३॥ यावारकस्थापनम् पंचवोल्लसच्छायैः शक्रचापानुकारिभिः। जगद्वर्णितसत्कीर्तिवर्णपूरैर्यजे जिनम् ॥११४॥ वर्णपूरकम् प्रोद्दण्डैः सदसोपेतैः यौवनारम्भसन्निभैः । निराकृतेक्षुकोदंडं यजे पुण्ड्रेक्षुभिर्जिनम् ॥१५॥ इक्षुस्थापनम् । अर्थात्-मंत्रन्यासके पश्चात् मैनफलके साथ धवल वस्त्रयुगलसे प्रतिमाके मुखको आच्छाद न करे । पुनः प्रतिमाके कंकणबन्धन, काण्डकस्थापन, यावारक-(जवार) स्थापन, वर्णपूरक और इच्छुस्थापन क्रियाओंको करे। गाथा नं० ४२१ बलिवर्तिकादि सत्पुष्पपल्लवाकारैः फलाकारैरनेकधा । आनः पिष्टोद्भवैः शम्भु बलिवयुत्करैर्यजेत् ॥१६॥ बलिवत्तिकास्थापनम् सौवर्ण राजतं पूर्ण सुवारिपल्लवाननम् । दधिदूर्वाक्षताक्तांगं भुंगारं पुरतो न्यसेत् ॥११७॥ भुंगारस्थापनम् अनेन विधिना सम्यक् द्वे चत्वारि दिनानि वा । त्रिसन्ध्यमर्चनं कुर्वन् जिनार्चामधिवासयेत् ॥११८॥ अधिवासनाविधानम्

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