Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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प्राकृत-शब्द-संग्रह
२१९
शुभ । सुख
३६
सुभग
अच्छा आनन्द दूसरोका प्यारा पुण्यवर्धक योग
१५७ २३२ ३२६
शुभयोग
सुहग सुहजोय
सुहम । सुहुम सुहावह सुहमलोह सुहुमसंपराय सुहुमसुहुम सुहोवयोग सुई सूर
दृष्टि-अगोचर सुखदायक अत्यन्त क्षीण लोभ दशवे गुणस्थानका नाम अतिसूक्ष्म पुण्य-वर्धक योग प्रसूति
३३३ ५२३ ५२.३ ५१५
सुखावह सूक्ष्मलोभ सूक्ष्मसाम्पराय सूक्ष्म-सूक्ष्म शुभोपयोग सूति शूर शूल स्वेद श्वेत श्रेणि
४०
वीर
२६४
२५ १०६
से सेढि
१७१
सेणिय सेयकिरिया
श्रेणिक
सेकक्रिया হল
३३८
सेल
सेवित्र सेस
सेवित
१६८
शेष
२६
सोऊण
पीड़ा पसीना उज्ज्वल पक्ति मगधराज, श्रेणिक बिम्बसार सेकना पर्वत सेया गया अवशेष सुनकर आनन्द विषाद कर्ण सोलह सुन्दर वर्णवाला, सोने-सा रंगयुक्त सुन्दर भाग्य शोधना प्रथम स्वर्ग
श्रुत्वा
१२१
सोक्ख
सौख्य
सोग
शोक
१६५
सोय सोलह सोवण्ण सोहग्ग
श्रोत्र षोडश सौवर्य सौभाग्य शोधन सौधर्म
सोहण
४८३ ३४०
शोधयित्वा
शोध कर
३०८-५४८
सन्देह
शंका संकल्प
सोहम्म (*सोहिऊण
सोहित्ता संक संकप्प *संकप्पिऊण संख संखा संखेव संखोय संगह संगाम
संकल्प्य शंख
२६३ ३८४
४११
दृढ़ विचार सकल्प करके शख गणना साररूप हल-चल युक्ति-युक्त युद्ध
संख्या संक्षेप संक्षोभ सगत संग्राम
१७५
३४७
२१६
४८६

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