Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 213
________________ प्राकृत-शब्द-संग्रह २२१ हृदय ४६८ हियय हिरराण हिंडत हिंडित हिंताल हिरण्य हिडन्त २१३ १७७ भ्रमित हिन्ताल (देशी शब्द) हुडावसर्पिणी मन सोना, चादी झूलता हुआ भ्रमण किया हुआ हिन्ताल वृक्षविशेष वाद्य-विशेष काल-विशेष, जिसमे अनुचित एवं असंगत बातें भी होवें साधन हो करके ४४० ४१२ टुंडावसप्पिणी . ३८५ २६३, ३६ १३१ होऊण भूत्वा * इस चिह्नवाले संबंध बोधक कृदन्त शब्द है। + इस चिह्नवाले वर्तमान कृदन्त शब्द है। * इस चिह्नवाले अव्यय शब्द है । आवश्यक निवेदनमुझे इस संग्रह में कुछ प्रसिद्ध या प्रचलित विषयों के विरुद्ध भी लिखना पड़ा है वह केवल पाठकों की सुगमता के लिए ऐसा किया है । ग्रन्थ में आये हुए शब्दों की अकारादि क्रम से तालिका दी गई है, साथमे उनका अर्थ भी । ग्रन्थ गत अर्थ पहले और उसके अन्य अर्थ उसके पीछे दिये गये हैं।

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