Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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गाथानुक्रमणिका
गाथाङ्क
गाथाङ्क
.६७
१६१
२१० ३५५ २३४
३३७ ७१
२३५
१७०
११६
२५२ ३८४
३०७
mr
१३६
१६४
~
४५१ ४७७
२६६ ५२१
२००
४७०
३६२
४६०
अइणिठ्ठरफरसाई अइतिव्वदाहसताअइथूल-थूल-थूल अइबालबुड्ढरोगा अइलघिओ विचिट्ठो अइवुड्ढबालमूयअइसरसमइसुगध अक्खयवराडओ वा अक्वेहि णरो रहिओ अगणित्ता गुरुवयण अग्गिविसचोरमप्पा अच्छरसयमज्झगया अट्ट कसाए च तओ अट्ठदलकमलमज्झे अट्ठदसहत्थमेत्त अट्ठविहमगलाणि य अणिमा महिमा लघिमा अणुपालिऊण एवं अणु लोह वेदतो अण्णाणि एवमाईणि अण्णाणिणो वि जम्हा अण्णे कलबवालुयअण्णे उ सुदेवत्त अण्णो उ पावरोएण अण्णोणं पविसता अण्णोण्णाणुपवेसो अण्णो वि परम्स धण अतिहिस्स सविभागो अत्तागमतच्चाण अत्ता दोसविमुक्को अयदंडपासविक्कय अरहतभत्तियाइम्
३६३ ४४२ ५१३
अरुहाईण पडिम अलिय करेइ सवह अलिय ण जपणीय अवसाणे पच धडाअसण पाण खाइम अ सि आ उ सा सुवण्णा असुरा वि कूरपावा अह कावि पावबहुला अह ण भणइ तो भिक्ख अह तेवड तत्तं अह भुजइ परमहिल अहवा आगम-णोआअहवा आगम-णोआअहवा कि कुणइ पुराअहवा जिणागमं पुत्थअहवा णाहि च वियप्पिअहवा णिलाडदेसे अह वेदगसद्दिट्ठी अहिसेयफलेण णरो अतोमुहुत्तकालेण अंतोमु हुत्तसेसा
प्रा आउ-कुल-जोणि-मग्गण आगमसत्थाइ लिहाआगरद्धि च करेज्ज आगासमेव खित्त आयविल-णिव्वियडी आयविल-णिव्वियडी आयास-फलिह-सणिह आरोविऊण सीसे आसाढ-कनिए फग्गु आमाढ कत्तिए फग्गुणे आसी मसमय-परममय
४६६
५१६ ४६१
४६६
४६४ ५२३ १६० २३६ १६६
५३१
२६६ १८७
२३७ ४४५
३१ २६२ ३५१ ४७२ ४१७
३५३
५०७
५४०

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