Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 217
________________ गाथानुक्रमणिका २२५ २५५ ४३२ ३५ ४१३ ४२७ २४३ ३३८ गहिऊणस्सिणिरिक्खमि गंतूण गुरुसमीवं गतूण य णियगेहं गंतूण सभागेह गिज्जतसधिबधाइएहि गुणपरिणामो जायइ गुरुपुरओ किदियम्म गुलुगुलुगुलत तविलेहि गोणसमयस्स एए गो-बंभण-महिलाण गो-बभणित्थिघाय ३४३ o W KC WW GMWWWW KM . ५१८ १७८ १५६ १६४ २७६ ३७३ ५११ ५१७ घणपडलकम्मणिबहुव्व घटाहि घटसद्दा ४८४ ४५६ ३६४ कच्चोल-कलस-थाला कणवीर-मल्लियाहि कत्ता सुहासुहाण कप्पूर-कुकुमायरु कम्हि अपत्तविसेसे कर-चरण-पिट्ठ-सिरसाण करण अधापवत्त कहमवि णिस्सरिऊण कह वि तओ जइ छट्टो कंदप्प-किब्भिमासुर काउस्मग्गमि ठिओ काऊण अट्ठ एयंकाऊण तव घोर काऊण पमत्तयर काऊणाणतचउट्ठकाऊणुज्जवणं पुण कायाणुरूवमद्दण काराबगिदपडिमा कास्य-किराय-चडाल कालायरु-णह-चदहकिकवाय-गिद्ध-वायसकित्ती जस्सिदुसुब्भा किरियम्मब्भुट्ठाण कि करमि कस्य वच्चमि कि केण वि दिट्ठो हैं कि चुवसमेण पावस कि जपिएण बहुणा कि जपिएण बहुणा कि ममिणदमणमिण कुत्थुभरिदलमत्ते कुसुमेहि कुसेसयवयणु कोह माणे माण ३२६ २३१ ३८६ १६ चउतोरण-चउदारो चउदसमलपरिसुद्ध चउविहमरूविदव्व चउसु वि दिसासु चम्मट्टि-कीड-उदुर चिट्ठज्ज जिणगुणारोचित्तपडिलेवपडिमा चितेइ मं किमिच्छइ ४३८ ३९७ ३१५ ४१८ १६६ ११४ ५४१ ३२८ १६७ १०३ १६१ ३४७ ० ० ० ० ० छच्च सया पण्णासुत्तछत्तेहि एयछत्तं छत्तेहिं चामरहिं य छम्मासाउगसेसे छम्मासाउयसेसे छ हतण्हाभयदोसो छेयण-भेयण-ताडण 0 ० yee 0 ४८१ 1 ४८५ ० ५२२ mr ग्वीरुवहिमलिलवारा 0 mar ० जइ अद्धवहे कोइ वि जइ अंतरम्मि कारणजइ एवं ण रएज्जो जइ कोवि उसिणणरए जइ खाइयसद्दिट्ठी जइ देइ नह वि तत्त्थ ३०६ गच्छइ विसुद्धमाणो गब्भावयार-जम्माहिसेयगहिऊण सिमिरकर-किरण or ४५३ ४०५ १२०

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