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वसुनन्दि-श्रावकाचार
कारणभावनाभ्यो नम' मत्रका त्रिकाल जाप्य करना चाहिए । प्रतिदिन षोडशकारण भावनामेसे एक-एक भावनाकी भावना करना चाहिए। यह व्रत लगातार सोलह वर्ष तक किया जाता है।
दशलक्षण-व्रत-यह व्रत भी वर्षमे तीन वार भादों, माघ और चैत्र इन तीन महीनोमे किया जाता है। यह शुक्ल पक्षकी पचमीसे प्रारम्भ होकर चतुर्दशीको पूर्ण होता है। उत्तमविधिमे दश दिन के १० उपवास करना आवश्यक है । मध्यमविधिमे पचमी, अष्टमी, एकादशी और चतुर्दशी इन चार दिनोमे उपवास और शेष छह दिनोंमे छह एकाशन करना आवश्यक है । जघन्य विधिमें दश दिनके १० एकाशन करना चाहिए। प्रतिदिन उत्तमक्षमा आदि एक-एक धर्मका आराधन और जाप्य करना चाहिए । यह व्रत लगातार दश वर्ष तक किया जाता है।
रत्नत्रय व्रत--यह व्रत भी दशलक्षण व्रतके समान वर्षमें तीन बार किया जाता है। शुक्ला द्वादशीको एकाशन करके तीन दिनका उपवास ग्रहण करे। चौथे दिन पारणा करे। प्रतिदिन रत्नत्रय धर्मका आराधन और जाप्य करे। यह व्रत लगातार तीन वर्ष तक किया जाता है।
पुष्पांजलि व्रत-यह व्रत भादो, माघ और चैतकी शुक्ला पंचमीसे प्रारम्भ होकर नवमीको समाप्त होता है। उत्तम विधिमें लगातार पाँच उपवास करे। मध्यम विधिमें पचमी, सप्तमी और नवमीके दिन उपवास और षष्ठी वा अष्टमीको एकाशन करे। जघन्य विधिमे आदि और अन्तके दिन उपवास तथा मध्यके तीन दिन एकाशन करे । प्रतिदिन ॐ ह्री पच-मेरुसम्बन्धि-अशीतिजिनचैत्यालयेभ्यो नम' इस मत्रका त्रिकाल जाप्य करे। अकृत्रिम चैत्यालयोकी पूजा करे।
इन व्रतोके अतिरिक्त शास्त्रोमे और भी व्रतोके विधान है जिनमेसे क छके नाम पाठकोके परिज्ञानार्थ यहाँ दिये जाते है:--
लब्धि विधान, सिहनिष्क्रीडित, सर्वतोभद्र, धर्मचक्र, जिनगुणसम्पत्ति, श्रुतिकल्याणक, चन्द्रकल्याणक, रत्नावली, मुक्तावली, एकावली, द्विकावली, कनकावली, मेरुपक्ति, अक्षयनिधि, आकाशपचमी, चन्दनषष्ठी, निर्दोषसप्तमी, शीलसप्तमी, सुगन्धदशमी, अनन्तचतुर्दशी, नवनिधि, रुक्मिणी, कवलचन्द्रायण, नि शल्य अष्टमी, मोक्षसप्तमी, परमेष्ठीगुणवत आदि। इन व्रतोंके विशेष विवरणके लिए प० किशनसिहजीका क्रियाकोष, जैन व्रत-कथा और हाल ही में प्रकाशित नव्रत-विधान सग्रहो देखना चाहिए।