Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 206
________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार वेदी २१४ वेइ । वेइय वेजयंत *वेढिऊण वेदगसद्दिट्टी *वेदंत वेयणीय वेर वेरग्ग वेसा । वेस्सा वोसरण वेदिका वैजयन्त वेष्टयित्वा वेदकसम्यग्दृष्टि वेदयन् वेदनीय वेदिका गोलाकृति उच्च भूमिका विमान विशेष वेष्टित करके क्षायोपशमिक-सम्यक्त्वी अनुभव करता हुआ एक कर्म विरोध, शत्रुता उदासीनता वैर ०००) ~90) Um वैराग्य AG वेश्या बाजारू स्त्री . चंचण परित्याग छलना वर्ण, चिह्न, पकवान स्थूल पर्याय समूह वंजण वंजणपज्जाय वंद वंदण वंदणमाला वंभ वंभण वंभयारी वंस व्युत्सर्जन वचन व्यञ्जन व्यंजनपर्याय वृन्द वन्दना वदनमाला ब्रह्म ब्राह्मण ब्रह्मचारी वंश वन्दना २७५,३९५ आत्म स्वरूप विप्र, द्विज कामनिग्रही कुल, गोत्र, अन्वय -2006 Ax सकृत् सह सईऊण सक सक्कर सक्करप्पह सक्खिय शयित्वा शक शर्करा शर्कराप्रभा साक्षिक स्वक स्वर्ग एक वार सो कर इन्द्र बालु, शक्कर दूसरी नरक भूमि गवाह अपना देवलोक २६१ सग २१७ ४३६ स्वगृह अपना घर २७१,१६७ यथार्थ सग्ग (सगिह । सघर सञ्च सचित्त सचित्तपूजा :सञ्चित्त सजण सज्जण सिजोगिकवलिजिण सत्य सचित्त सचित्तपूजा सचित्त स्वजन . 'सजन सयोगकेवलिजिन ४६ 666 जीव-युक्त सचित्त द्रव्यसे पूजन या चेतनकी पूजा जीव युक्त कुटुम्बी सत्पुरुष तेरहवें गुणस्थानवर्ती जिनेन्द्र अरहन्त चैतन्य, होश, आहारादिकी वांछा संज्ञा ४२५

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