Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 203
________________ वणिक्सुता वर्णित प्राकृत-शब्द-संग्रह वैश्य-पुत्री जिसका वर्णन किया गया हो २७१ वणिगसुदा (वण्णि वण्णिय वत्ति वत्थ वत्त्थंग वत्थदुम वत्थहर वप्प विराडय । वरालय वय वस्त्र वस्त्राग वस्त्रद्रुम वस्त्रधर वता, बाप बत्ती कपड़ा एक कल्पवृक्ष वस्त्र-दाता, वस्त्र देनेवाला कल्पवृक्ष वस्त्रका धारक बोनेवाला, पिता २५१ २५६ २६१ १०४ "वराटक कौड़ी ३८४ २४ व्रत वचन वयण वयण २१० बदन ४६८ २०६ ४७० २१ १२५ ५१३ ५४६ ३४८ ७७ नियम, त्याग वचन, वाणी मुख द्वितीय प्रतिमाधारी. वलयाकार, वलयको प्राप्त एकनय, आचरण, व्यापार निवास वशमे करनेवाली ऋद्धिं प्रस्तुत ग्रन्थके निर्माता आचार्यका नाम कृष्णके पिता वशको प्राप्त मिथ्यादृष्टि पवन वचन-सम्बन्धी सूत्रपाठ, वाचना स्थूल नवम गुणस्थानका नाम काक कृष्णपुरी बारह तिथि-विशेष श्रेणिक-पुत्र २४६ १२ २२८ वयसावय वलइय ववहार वसण वसित्त वसुणंदि वसुदेव वसंगद वामदिट्टी वाउ वचित्र वायण वायर वायरलोह वायस वारवई वारस वारसी वारिसेण वालय वालुप्पहा वाबत्तरि वाविय वावी वास, वस्स वासिय वासि वासुदेव २८४ व्रतिकश्रावक वलयित व्यवहार वसन वशित्व वसुनन्दि वसुदेव वशगत वामदृष्टि वायु वाचिक वाचन बादर बादर-लोभ चायस द्वारावती द्वादश द्वादशी वारिषेण बालुका बालुप्रभा द्वासप्तति उप्त वापी वर्ष वासित वासि वासुदेव ५२२ ३४६ ३७० ३७० ५४ १६६ १७२ ५३५ नरक-भूमि बहत्तर बोया गया बावड़ी साल, संवत्सर सुगन्धित वसूला कृष्ण २४१ ५०१ ३६३ ४०४ २७६. ३४६

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