Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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६ प्राकृत-शब्द-संग्रह
प्राकृत
संस्कृत
हिन्दी
गाथाङ्क
अति
१८
अइदु? अइथूल अाइबाल अइसरस अइसुगंध अक्क अकक्कस अकट्टिम अकय अक्ख
अति दुष्ट अति स्थूल अति बाल अति सरस अति सुगंध अर्क अकर्कश अकृत्रिम अकृत
अक्ष
अक्खय अक्खर अक्खलिय अक्खीण अक्खीणमहानस अक्खीणलद्धि अक्खोह *अगणित्ता अगिराहत अग्गि अगुरुलहु अघाइ अचित्त अचित्तपूजा प्रचणअच्चि
अक्षत अक्षर अस्खलित अक्षीण अक्षीणमहानस अक्षीणलब्धि अक्षोभ अगणयित्वा अगृह्णन् ।
अधिक अत्यन्त दुष्ट
६७ बादर-बादर बहुत छोटा
३३७ अतिरस-पूर्ण
२५२ अति उत्तम गन्ध
२५२ सूर्य, आक, सुवर्ण दूत (दे०)
४२७ कोमल
३२७ स्वाभाविक, बिना बनाया
४४६ अकृत
५२८ ऑख, आत्मा, द्विन्द्रियजन्तु चकेकी धूरी, कील, पाशा अखंड, चावल, धाव-रहित, अखंडित, सपूर्ण ३८४ वर्ण, ज्ञान, चेतना, अविनश्वर, नित्य ४६४ अबाधित, निरुपद्रव, अपतित. प्रतिध्वनित क्षय-रहित, अखूट, परिपूर्ण, ह्रास-शून्य ५१२ अक्षय भोजनवाला रसोईघर
३४६ अक्षय ऋद्धि
४८४ क्षोभ-रहित, स्थिर, अचल,
४८४ नही गिनकर नहीं ग्रहण कर
२१२ आग न छोटा, न भारी कर्म-विशेष जीव-रहित, अचेतन
४४६ प्रासुक-द्रव्योंसे पूजा
४५० पूजन, सन्मान
२२५ दीपशिखा, अग्निज्वाला, कान्ति, तेज, किरण, (लौकान्तिक देवोंका विमान) सोलहवाँ स्वर्ग, विष्णु देवी, रूपवती स्त्री अचरज
१६४
अग्नि
५३५
अगुरुलघु अघाति अचित्त अचित्तपूजा अर्चन अार्च
xx6
४३६
अच्युत अच्छर
अच्युत अप्सरा
४६५
अच्छेरय
-
अाश्चर्य
४८८ ८२
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