Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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१८०
वसुनन्दि-श्रावकाचार
एकेन्द्रिय
२०१
एकैक
५१६
एइंदिय एकेक एग एगचकणयर एगिदिय एरिह एत्तिय एत्तियमेत्त एत्तो
एक एकचक्रनगर एकेन्द्रिय इदानीम् एतावान् एतावन्मात्र
३१ १२७ १६६
२३२
१७६
४४५
२०६
२४ २५१
एक स्पर्शन-इन्द्रियवाला जीव एक-एक एक इस नामका नगरविशेष एक इन्द्रियवाला अब इतना इतना ही इससे, इस कारण एक एक अखड स्थान व्रतविशेष तपविशेष एक बार गोचरी ग्यारह तिथिविशेष एक दिनके अन्तरसे इन्द्र का हस्ती ऐसा, इस प्रकारका अन्वेषण, निर्दोष आहारकी खोज भोजनकी शुद्धि
एक एकक्षेत्र एकस्थान एकभक्त एक-भिक्षा एकादश । एकादशी एकान्तर
एयखित्त एयट्ठाण एयभत्त एयभिक्ख एयारस एयारसी एयंतर एरावण *एरिस
२६२
३०६
३६६
ऐरावत
२७६
१६८
। ईदृश । एतादृश एषणा एषणासुद्धि
एसणा एसणसुद्धी
३८७ २३१
२२४
प्रोसह
दवा
श्रौषध औषधर्द्धि
अोसहियरिद्धी ओह प्रोहिणाय
२३३ ५१२ ३३२
औषध-सिद्धिवाली ऋद्धिविशेष समूह रूपी पदार्थको जाननेवाला अतीन्द्रिय ज्ञान
श्रोध
अवधिज्ञान
अंगण अंजन
अंजलि
३७३
अंडय अंतराय अंतोमुहुत्त अंधयार
अङ्गण अञ्जन अञ्जलि अंडक अन्तराय अन्तर्मुहूर्त अन्धकार अम्बर अम्बुराशि अम्बुरुह
आंगन, चौक कज्जल हाथका संपुट अंडकोश विघ्न, रुकावट डालनेवाला कार्य मुहतके भीतरका समय अंधेरा आकाश, वस्त्र समुद्र कमल
८१ ५२५ ४६६
४३७
अंबर अंबुरासि अंबुरुह
.
४७२

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