Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 194
________________ २०२ वसुनन्दि-श्रावकाचार कल्प वृक्ष आखेट, शिकार पारगी-जातीय ० पारिजातय पारद्धि पारसिय पाव पाविठ्ठ पावरोय पावण पाहण बुरा कार्य पारिजातक पारर्द्धि पारसीक पाप पापिष्ठ पायरोग प्रापण पाषाण प्राग्य पाश पाव प्रासाद १८७ ५१३ पाविऊण २७ पास पापी कुष्ट, कोढ प्राप्ति, लाभ पत्थर पा करके जाल समीप भवन जीव-रहित अनि पीछी, मोरपख, पटना देखते हुए २१६ २५४ प्रासुक ८०२ पासाय [पासुय । पासुग पिच्छ +पिच्छंता +पिच्छमाण पिंजर पिट्रि पिंडत्थ पित्तल पिय पियर देखते हुए पिच्छ, पृच्छा प्रेक्ष्यन्तः प्रेक्ष्यमाण पिंजर पृष्ठ पिडस्थ पित्तल पिक, प्रिय पितर, पिता स्तनन्धय पिल्लय पिहु . WA000 WA ० ००००G G60x1 जी पिजरा पीठ ध्यान विशेष, धर्मध्यानका प्रथम भेद पीतल कोकिल, पक्व, प्यारा बाप, सरक्षक पिल्ला, बच्चा विस्तीर्ण दुःखित पीपलका वृक्ष ओर फल अचेतन मत्तिक द्रव्य सम्मान्य अर्चा अर्चन पिछला भाग पृथु पीडिय पीपल २३६ पुग्गल पीडित पिपल पुद्गल पूज्य पूजा पूजन पुज्जण पुट्ठ पुडि पृष्ठ पीठ पुष्टिकर पुट्टियर पुढवी, पुढिवी **पुण पृथिवी पौष्टिक जमीन फिर, अनन्तर सुकृत, शुभकर्म २५२ १७१ १६६ पुण्ण ८० पूरा ३९५ पुण्णिमा पुण्णंकुर पुण्णिंदु पुरणेंदु पुण्य पूर्ण पूर्णिमा पुण्याकुर पूर्णेन्दु पूर्णेन्दु पूर्णमासी पुण्यके अंकुर पूर्ण चन्द्र पूर्ण चन्द्र ३७० ४२६ २५६

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