Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 179
________________ प्राकृत-शब्द-संग्रह २६८ चंदोवम चंपय ४३१ चंपा चिंतण चन्द्रोपम चम्पक चम्पा नगरी चिन्तन चिन्तातुर चन्द्र तुल्य वृक्ष विशेष मगध देशकी नगरी विचार चिन्ताकुल Xsur चिंताउर षष्ठ षष्ठमादिखवण षष्ठी छठा दो दिनका उपवास आदि छठवी तिथि आतपत्र, छाता छट्ट छट्टमाइखवण छट्टी छत्त छब्भय छम्मास छिराण छिह *छि ३७३ ३५१ ३६८ ४०० १८ १६७. २३० छह भेद षड्भेद षण्मास छिद्र छह महीना कटा हुआ विवर, छेद छने के लिए छुरा, उस्तरा भूख छेदना छोडा हुआ, मुक्त, परित्यक्त ३०२ क्षुधा छेदन W १८४ US छेयण (छडिअ छडिय (*छडिऊण *छडित्ता मुक्त, त्यक्त ४३० त्यक्त्वा छोड़कर २७१, २६० २३१ यतना जगत्पूरण यज्ञावनि जननी सावधानी लोक-पूरण समुद्धात विशेष यज्ञभूमि ५३१ माता M० यत्न जहणा जगपूरण जग्गावणि जणणी जत्त नजदो जम जम्म जम्मण जम्माहिसेय जम्हा OS OS 9 यतः यम WWWM जन्म उद्योग, चेष्टा जिस कारण कृतान्त उत्पत्ति उत्पाद जन्म-कल्याणक जिससे लोक, विजय तीन लोक कल्पातीत-विमान वृद्धपना ३० जय जन्मन् जन्माभिषेक यस्मात् जगत्, जय जगत्त्रय जयन्त जरा जलनिधि जलधारा जलधि ५४६ ४६८ ४६२ जयत्तत्र जयंत जर, जरा जलणिहि जलहारा जलहि समुद्र पानीकी धार समुद्र ४८३ ४८६

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