Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 177
________________ प्राकृत-शब्द-संग्रह गिर गिर, गिरा गिह गिहदुम गिहारंभ गृह गृहद्रुम गृहारम्भ २५४ ३९८ १५ गुण २०७ गुणण्णिय गुणव्वय गुरु गुलुगुलु गुणान्वित गुणवत गुरु गुलगुलाय वाणी, भाषा, धर गृहदाता कल्पवृक्ष घरके आरम्भ गुण, स्वभाव गुणसे युक्त इस नामका श्रावकवत भारी, शिक्षा-दीक्षादाता आचार्य गुलगुल शब्द करना गाने योग्य इस नामका अहमिन्द्र पटल गाय, रश्मि, वाणी, अप्रधान, साक्षी गुण निष्पन्न, गोत्र, नाम, पर्वत विषय, गायोके चरनेके भूमि जाकर शास्त्र, परिग्रह गेय ४१२ ४१३ गेय गेविज्ज गो गोण गोय ग्रैवेय, अवेयक गो, गौ गौण गोत्त गोचर गत्वा ग्रन्थ गोयर ५२६ ५२६ *गंतूण ३८६ गंथ २०८ *घडाविऊण ३५५ घटाग्य घटयित्वा धन गृह बना कर, बनवा कर मेघ, सघन घण २५३ २८६ घर घर घिट्ट धृष्ट सघर्ष करना, ४२८ चित्तूण लेकर ७५ गृहीत्वा घूर्णन ४१२ घुिम्मत घोर घंटा घोर घूमता हुआ भयानक शब्द करनेवाला कांस्य वाद्य घण्टा ४११ २२६ *चइऊण २६८ त्यक्त्वा ।च्युत्वा चतुष्टय चतुर्थ चतुर्थ स्नपन चतुर्थी चतुर्दश छोड़कर चयकर चारका समूह चौथा चौथा स्नान चौथी तिथि ५३५ ४२३ ३६८ चौदह २३०, १२६ चउट्टय चउत्थ चउत्थरहवण चउत्थी चिउद्दस चउदह चउर चउरिदिय चउन्विह चउसट्टि चक्क चक्कवटि चतुर चतुरिन्द्रिय चतुर्विध चतुःषष्ठि चक्र चक्रवर्ती चार चार इन्द्रियवाला जीव चार प्रकार चौसठ पहिया, पक्षिविशेष सम्राट Mrur २६३ १६७ १२६

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