Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 176
________________ १८४ खर वसुनन्दि-श्रावकाचार खचर विद्याधर पक्षी रासभ, कठोर खल खलिहान, दुर्जन स्खलन्त गिरता हुआ क्षपण क्षय करना क्षपक क्षय करनेवाला क्षपित नष्ट किया हुआ खाद्य खानेयोग्य क्षायिक सद्दृष्टि क्षायिक सम्यग्दृष्टि १०७ १०६ ७३ ५१८ ५१७ ५१५ २३४ खारा ५१२ १६२ २४० खयर खर खल खलंत खवण खवय खविय खाइय खाइयसहिही खार खित्त खिदि खिल्लविल्लजोय खिवित्ता खीणकसाय खीर खीरजलहि खीरुवहि खीरोद खुहिय खेत्र खत्त +खेलंत खोम खंति खंध खेत पृथिवी आकस्मिक योग क्षेपण कर बारहवां गुणस्थान २३६ ५२३ २४३ दूध क्षीरसागर ४६८ क्षिति (दशी) दिश्त्वा क्षीणकषाय क्षीर . क्षीरजलधि क्षीरोदधि क्षीरोद क्षुभित खेद क्षेत्र क्रीडन्त ४११ क्षीरसमुद्र क्षीरोदधि क्षुब्ध रज, शोक खेत खेलता हुआ रेशमी वस्त्र क्षमा कंधा, परमाणुओंका समुदाय क्षौम २५६ ५४३ क्षान्ति स्कन्ध, गति, ३४२ ७५ गर्जन्त, गर्जमान, ४११ गह गज्जंत गज्जमाण गब्भ गब्भावयार गमण *गमिऊण गयण गरहा ज्ञान, गमन, जन्मान्तर प्राप्ति गर्जना करता हुआ, गरजता हुआ, उदर, उत्पत्तिस्थान गर्भ-कल्याणक गति, जाकर, आकाश २६४ ४५३ गर्भावतार गमन गमित्वा गगन २१४ २८८ गर्दा गृहीत्वा गृहीत ग्राम *गहिऊण गहिय गाम २८३ निन्दा करना, लेकर ग्रहण किया हुआ, स्वीकृत, पकड़ा हुआ छोटा गांव, समूह गीध पक्षी ७४ । गिद्ध. २११

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