Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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प्रकृित-शब्द-संग्रह
जूहिया
जोइ जोइदुम
द्यूत यूथिका ज्योति, योगी ज्योतिद्रम ज्योतिष्क योग योनि योग ,योग्य
।
जोइस
जोग
२५४ २५१
४३ १७७
जोणि जोय जोयण जोव्वरण
जुआ चमेली प्रकाश, साधु प्रकाश करनेवाला कल्पवृक्ष ज्योतिषी देव मन, वचन, कायका व्यापार उत्पत्ति स्थान समाधि, लायक चार कोश जवानी छोटा प्राणी कहने योग्य वृक्ष विशेष, जामुन, जम्बुक-गीदड कहा हुआ निम्बू बिशेष, जबीरी
योजन
२१४
जंतु
यौवन जन्तु जपनीय
२६५ २३०
जंपणीय
जंबु
जंपिय जंबीर
जल्पित जम्बीर
४४०
भ
भमझमंत
४१२
भष ध्यान
झमझम शब्द करता हुआ अश्वविशेष, मत्स्य एकाग्र होना, चिन्ता रोकना
माण
१४८ १३०
टगर टिंटा
तगर (देशी)
सुगन्धित वृक्ष विशेष जुआ खेलनेका अड्डा
mo
ठवणा *ठविऊण ठाण
W1
५
+ठाहु
२२६
स्थापना स्थापयित्वा स्थान तिष्ठ स्थिति स्थितिज स्थित्वा स्थिति स्थितिखड स्थितिकरण
आरोपण करना स्थापना करके भूमि, जगह, अवकाश ठहरो, ऐसा वचन कहना आयु स्थिति-जन्य ठहराकर उन आयुके खंड, कांडक स्थितीकरण अवस्थित
टिइ ठिइज *ठिच्चा ठिदि ठिदिखड ठिदियरण ठिय
५०६ १६२
२५५
४१
४८
स्थित
२२२
डिज्मंत डोंब
0
दह्यन् डोम
जलता हुआ नीच जाति, चडाल
.15
सरिता नाशको प्राप्त
२११

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