Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 173
________________ प्राकृत-शब्द-संग्रह कदाचित् *कइया (ककस । कक्कड कचणार कञ्चोल कर्कश कचनार कच्चोलक कार्य कण कनक कज क किसी समय कठोर, परुष, निष्ठुर ककर-पत्थर, कड़ा कठिन वृक्षविशेष पात्रविशेष, प्याला प्रयोजन, कर्तव्य, उद्देश्य, काम लेश, ओदन, दाना स्वर्ण, विल्ववृक्ष धतूरेका वृक्ष (कनेरका वृक्ष । कनेरका फूल कनेरका वृक्ष १९८ २२६ १३७ ४३२ २५५ २३६ २३० २६० ४३१ ० ०. कर्णिकार कर्णवीर m करण कणय करण्यार । कण्णियार कणवीर कण्णिय । कणिया (कत्ता र कत्तार कत्तिय कत्तरि कर्णिका कमलका बीजकोश, मध्य भाग ० ० 000r mm ३५३ ३०२ कर्ता कार्तिक कर्तरी (कल्प । कल्प्य कल्पद्रुम कल्पविमान करनेवाला कातिकका महीना कैची युगविशेष देवोंका स्थान कल्पवृक्ष स्वर्गविमान कप्प १९३ २५० ४६५ ४३८ ४२७ कपूर कर्म कप्पदुम कप्पविमाण (कप्पुर । कप्पूर कम्म कय *कया कयंब कर करकच करड ४३१ कृत कदा कदम्ब कर क्रकच करट (करण । परिणाम कल, कला १६७ करण कपूर, सुगन्धित द्रव्यविशेष जीवके द्वारा किया जानेवाला कार्य किया हुआ, कच, केश कभी १०१ वृक्षविशेष किरण, हस्त १५७ शस्त्रविशेष, करोत वाघ-विशेष, काक, व्याघ्र, कबरा, चितकबरा ४११ इन्द्रिय, आसन करणविशेष शब्द, मनोहर, कर्दम, धान्य-विशेष २६३ स्त्री ११२ उत्तम धान्य, चोर ४३० चाँवल, भात ४३४ ताम लोहा आदिका रस वृक्ष विशेष १६६ घड़ा समूह, जत्था, तूणीर, कंठका आभूषण सुख, मंगल कलत्र कल कलत्त कलम कलमभत्त कलयल कलंब कलस कलाव कल्लाण २४ कलम कलमभक्त कलकल कदम्ब कलश कलाप कल्याण ३५७

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