Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 162
________________ १७० वसुनन्दि-श्रावकाचार वि० ल० ४०४ भू० कृ० १६० . (देखो नं० २१८) विसेज्ज २२२-विस्सर = वि+ स्मृ (भूल जाना) विस्सरियं २२३-विहर = वि+ह (विहार करना) विहरिऊण २२४-विध%D विद् (जानना) विति (देखो न० २२२) वीसरियं २२५-बुच्च = वच् (बोलना) वुच्चा २२६-वे + वेदय् (अनुभव करना) वेपह २२७-वेढ % वेष्ट्र (लपेटना) वेढिऊण वोच्छामि २२८-वय-वच् (बोलना) । वोच्छ सं० ० ब० ल. भू० कृ० व० ल० ५२८ ३७६ २१३ ६० सं० कृ० भविष्यत्काल ५, १३४ इत्यादि २७३, २६४ २८६ ४७६ ४८२ १३६ १८६ 더 व० कृ० 4 ३४६ ४३८ १३६ ४६६ ५१६ २२६-सय = शी, स्वप् (सोना) सइऊण सं० कृ० २३०-सक्क = शक् (सकना). सका व० ल. २३१-सड = सद्, शद् (सड़ना) सडिज्ज, सडेज्ज वि० ल० सद्दहदि व० ल. २३२-सद्दह = श्रद्धा सद्दहमाणो (श्रद्धा करना) . सदहंतस्त सहहंतो २३३-समज्ज = सम् + अर्ज, (उपा- समज्जियं जैन करना) २३४-समालह % समा+लभ समलहिज, समालहिज्ज वि० ल० (विलेपन करना) २३५-समाण = सम् + श्राप (पूरा करना) समाणेइ व० ल० २३६-सर = सु (आश्रय लेना) सरिऊण सहा २३७-सह + सह. (सहना) सहसि सहह २३८-साह = साधू (सिद्ध करना) साहामि २३९-सिम = सिध् (सिद्ध होना) [ सिज्झइ । सिज्मेह २४०-सुण = श्रु (सुनना) सुबह आ० ल० २४१-सुमराव % स्मारय (याद दिलाना) सुमराविऊण सं० ० २४२-सुस्स%शुष् (सूखना) सुस्सइ सेवा २४३--सेव = सेव (सेवा करना) र सेविओ । सेवंतो व० ० २४४-सो, सोश्र = स्वप् (सोना) सोऊण •सं० कृ० २४५--सोह = शोधय् (शुद्धि करना) ला सोहित्ता २४६-सकप्प = सम् + कल्पय संकप्पिऊण (संकल्प करना) २४७-संकीड % संम् + कीड (खेलना) संकीडइ व० ल० १७६, २०१ १०७ ५११, ५३६ ३३५ ___५, २६४ १७० व० ल० ४४ १३२ भू० ० ११३, १६४ १४० २३१, ३०८ ५४६ ३८४ ४८६ .

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