Book Title: Vasunandi Shravakachar
Author(s): Hiralal Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith
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१५८
वसुनन्दि-श्रावकाचार
२३-आलिंग-श्रा+ लिङ्ग (आलिं- आलिंगाविति प्रेरणार्थक वर्तमान लकार
गन करना) २४-श्रालोअ-श्रा+लोच (श्रालो- आलोइऊरण
सबधक कृदन्त
२७२ चना करना)
(आलोचेज्जा
विधि लकार २५–आसव-श्रा + सु (प्रास्त्रव होना) आसवइ
वर्तमान लकार
३६, ४० २६-आस-पास (बैठना)
(आसि
भूतकाल १४३, १५६, १६४,
पासी २७-आसि-पा+श्रि (आश्रय लेना) आसिय
सबधक कृदन्त ' आसेज, आसिज विधि ल.
५४४ २८-श्राहार-श्रा+ हारय्
आहारेऊण सब०कृ०
१३६ (श्राहार करना, ग्रहण करना)
५४२
२७
२९-इच्छ-इप् (इच्छा करना)
वर्तमान लकार
। इच्छति
११७
वर्त० ल. सबधक कृदन्त
६०, २३३
४१६
०
9
वर्त० लकार सबधक कृदन्त वर्त० ल. सबधक कृदन्त
MAM
.
३०-वय-वच् (बोलना)
उच्च ३१-उच्चाव-उच्चय (उठाना) उच्चाइऊण ३२-उच्चा-उत् + चारय
उच्चारिऊण (उच्चारण करना) ३३-उजम-उद् + यम्(उद्यम करना) उज्जमेदि ३४-उद्य-उत् + स्था (उठना) उद्वित्ता ३५-उप्पज्ज-उत् + पद (उत्पन्न होना) / उप्पज्जइ .
। उप्पजिऊण ३६-उप्पाय-उत् + पादय्
उप्पाइऊण (उत्पन्न करना) ३७-उप्पड-उत् + पत्
उप्फडदि, उप्पडदि . (उड़ना, उछलना) ३८-उल्लोव-(देशी)(चंदोवा तानना) उल्लोविऊण ३६-उवया-उप + या (पासमे जाना) उवयाइ ४० ---उववज-उप-पद् (उत्पन्न होना) [उववजा
। उववज्जति ४१-उववट्ट-उप + वृत् (च्युत होना) उध्वट्टिो ४२-उववरण-उपपन्न (उत्पन्न) ' उववरणो ४३-उव्वह-उद्+वह (धारण करना) उव्वहंतेण
वर्त० ल.
१३७
सबंधक कृदन्त वर्त० ल०
३६८
२४५
भू० कृ
२४० ५०६ १७६
वर्तमान कृदन्त
४४-कर-कृ (करना)
वर्त० ल०
१९७६७,१०,११२, ३०२, ३०५, ३७०, ५१०, ५११, ५४६

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