Book Title: Varn Jati aur Dharm
Author(s): Fulchandra Jain Shastri
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 15
________________ जिनदीक्षाधिकारमीमांसा 209-237 आगम साहित्य 209; आचार्य कुन्दकुन्द और मूलाचार 213; व्याकरण साहित्य 216; मध्यकालीन जैन साहित्य 225; महापुराण और उसका भनुवर्ती साहित्य 229; आहारग्रहणमीमांसा 238-252 दान देनेका अधिकारी 238; देयद्न्यकी शुद्धि 243, बत्तीस अन्तराय 244; कुछ अन्तरायोंका स्पष्टीकरण 245; अन्य साहित्य 248; . . .. समवसरणप्रवेशमीमांसा 252-258 समवसरणधर्म सभा है 252; समवसरणमें प्रवेश पानेके भधि कारी 253; हरिवंशपुराणके एक उल्लेखका अर्थ 255; जिनमन्दिरप्रवेशमीमांसा... 258-269 शूद जिनमन्दिरमें जायें इसका कहीं निषेध नहीं 258; हरिवंशपुराणका उल्लेख 261; अन्य प्रमाण 264; . आवश्यक षट्कममीमांसा 269-287 महापुराण और अन्य साहित्य 269; प्राचीन आवश्यक कमौका निर्णय 272; आठ मूलगुण 282; प्रकृतमें उपयोगी पौराणिक कथाएँ 287-297 तपस्वीकी सन्तान नौवें नारदका मुनिधर्म स्वीकार और मुक्तिगमन 287, पूतिगन्धिका धीवरीकी श्रावकदीक्षा और तीर्थवन्दना 288; परस्त्रीसेवी सुमुख राजाका उसके साथ मुनिदान 289; चारुदत्तसे विवाही गयी बेश्या पुत्रीका श्रावकधर्म स्वीकार 289; मृगसेन धीवरका जिनालयमें धर्मस्वीकार 290; हिंसक मृगध्वजका मुनिधर्म स्वीकार कर मोक्षगमन 290, राजकुमारका गणिका-पुत्रीके साथ विवाह 291; म्लेच्छ रानीकं पुत्रका मुनिधर्म स्वीकार 291; चाण्डालको धर्मकै फलस्वरूप देवत्वपदकी प्राप्ति 291; परस्त्रीसेवी

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