Book Title: Varn Jati aur Dharm Author(s): Fulchandra Jain Shastri Publisher: Bharatiya GyanpithPage 13
________________ विषयसूची धर्म 17-20 धर्मकी महत्ता 17; धर्मको व्याख्या 18; धर्मके अवान्तर भेद और उनका स्वरूप 19; व्यक्तिधर्म 20-50 जैनधर्मकी विशेषता 20; जैनधर्मको ब्याख्या 24, सम्यग्दर्शन धर्म और उसका अधिकारो 27; धर्ममें जाति और कुलको स्थान नहीं 29; गतिके अनुसार धर्म धारण करनेकी योग्यता 31; सम्यग्दर्शनकी उत्पत्तिके साधन 34; इन साधनोंका अधिकारी मनुष्यमात्र 36; सम्यक्चारित्र धर्म और उसका अधिकारी 47; समाजधर्म 50-64 व्यक्तिधर्म और समाजधर्ममें अन्तर 50; चार वर्णोका वर्णधर्म 57; विवाह और वर्णपरिवर्तनके नियम 58; दानग्रहण आदिकी पात्रता 59; संस्कार और व्रत ग्रहणकी पात्रता 60; उपसंहार 61; नोआगमभाव मनुष्योंमें धर्माधर्ममीमांसा 64-101 आवश्यक स्पष्टीकरण 64; नोआगमभाव मनुष्यकी व्याख्या 67; नोआगममाव मनुष्योंके अवान्तर भेद 73; धर्माधर्म विचार ... 78; मनुष्योंके क्षेत्रकी अपेक्षासे दो भेद 83; मनुष्योंके अन्य प्रकारसे दो भेद 86; एक महत्त्वपूर्ण उल्लेख 90; धर्माधर्मविचार 98; गोत्रमीमांसा 101-138 गोत्र शब्दकी व्याख्या और लोकमें उसके प्रचलनका कारण 101; . जैनधर्ममें गोत्रका स्थान 104; जैनधर्मके अनुसार गोत्रका अर्थPage Navigation
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