Book Title: Vandaruvruttya Parnamni Shraddha Pratikraman Sutra Vrutti
Author(s): Devendrasuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 112
________________ श्राद्धप्र. वृत्तिः ॥५०॥ SAMACROSALM उज्जोया दुन्नि इक इक्को अ । सुअदेवयादुसग्गा, पुत्तीवंदणतिथुइथुत्तं ॥२॥ अथ रात्रिकम्-इरिया कुसुमिणुसग्गो, जिणमणिवंदण तहेव सज्झाओ। सवस्सविसकथओ, तिण्णि उ उस्सग्ग कायवा ॥१॥ चरणे दंसण नाणे, दुसु लोगुजोय तइ. अइयारा । पुत्तीवंदणआलोय, सुत्त तह वंदखामणयं ॥२॥ वंदण तह उस्सग्गो, पुत्ती वंदणय पञ्च-51 क्खाणं तु । अणुसट्ठी तिनि थुई, वंदणबहुवेलपडिलेहत्ति ॥३॥ तथा पाक्षिकादीनि-मुहपत्तीवंदखामणय, संबुद्धाखामणं तहालोए । वंदणपत्तेयखामणाणि वंदणय सुत्तं च।१। सुत्तं अब्भुट्टाणं, उस्सग्गो पुत्तिवंदणं तह य । पजंते खामणया,तह चउरो छोभवंदणयाश एस विही पक्खियपडिक्कमणे। पक्खियतिनि सयाई,उस्सासा पणसया उ चउमाहूँ से।अट्टसहस्सं चरिमे, सिजसुराए तहुस्सग्गो।।प्रतिक्रमणं च कृतसामायिकेनैव कर्त्तव्यं, अतः तत्सूत्रं व्याख्यायते| करेमि भंते सामाइयं सावजं जोगं पञ्चक्खामि, जावनियमं पज्जुवासामि, दुविहं तिविहेणं, म-18 णं वायाए काएणं, न करेमि न कारवेमि तस्स भंते पडिक्कमामि, निंदामि, गरिहामि आप्पणं है। वोसिरामि ॥ __ तदिदं करोमि विदधामि, भद्र सुखकल्याणहेतुत्वात् , भयान्त सप्तविधभयस्यान्तकृत्त्वात् , भवान्त भवान्तकरत्वात् ॥५०॥ तथा चतर्गतिरूपसंसारोच्छेदकत्वात्। इदं चामन्त्रणं गुर्वनुज्ञातं सर्वमेव कायेमितिदर्शनपरं, समानां ज्ञानादीनामायो AGES Jain Education Ional For Private & Personel Use Only Ix jainelibrary.org

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