________________
श्रीमद्वल्लभाचार्य
1
भट्ट सोमयाजी थे । वे कृष्णयजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा के अधीति तैलड्न ब्राह्मण थे । आपकी माता का नाम यल्लमागारु था ।
आपश्री के वंश के मूलपुरुष श्रीगोविन्दाचार्यजी थे । श्रीमहाप्रभुजी ने जिस ज्ञाति में अवतार ग्रहण किया था वह ज्ञाति अपनी शुद्धता एवं आचारनिष्ठा में प्रसिद्ध रहती आयी है । आपका गोत्र भारद्वाज एवं आयास्य आङ्गिरस था । आपकी अवटंक ' खम्भंपाट्टिवारु ' थी और कुलदेवी रेणुका थी । इस कुल में परम्परा प्राप्त वैष्णव दीक्षा ग्रहण करने की प्रथा होनेसे यह कुल 'वैष्णव' कहा
20
जाता था ।
श्रीमद्वल्लभाचार्य ने जिस कुल में अवतार ग्रहण किया था उस कुल में सोमयाग नाम के यज्ञका भी यथेष्ट प्रचार रहा था । श्रीयज्ञनारायणजी सोमयाजी ने ३२ सोमयाग पूर्ण किये थे । इसी प्रकार श्रीगंगाधरजी ने २८, गणपति भट्ट ने ३०, बालंभट्ट ने ५, और लक्ष्मण भट्टजी ने पांच यज्ञ कर सो सोमयाग पूर्ण किये थे ।
शास्त्रीय मान्यता यह है कि सो सोमयाग पूर्ण होनेसे भगवान् स्वयं वहां अवतार ग्रहण करते हैं । तदनुसार भी भगवान् का इस कुल में जन्म लेना सिद्ध होता है ।
आपश्री का यथार्थ स्वरूप समझमें आये इसके लिये हम यहां एक व्याख्यान का संक्षिप्त स्वरूप प्रकाशित करते